________________
१८४
प्राकृत व्याकरण (१२) शौरसेनी में पूर्व शब्द का 'पुरव' यह आदेश विकल्प से होता है । जैसे:-अपुरवं नाड्यं; अपुरवागदं (अपूर्व नाट्यम् अपूर्वागतम् ); पक्ष में अपुव्वं पदं, अपुव्वागदं (अपूर्व पदम् , अपूर्वागतम्)।
(१३) शौरसेनी में स्वा प्रत्यय के स्थान में इप और दूण ये आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे:-भविय, भोदूण; हविय, होदूण; पढिय, पढिदूण; रमिय, रन्दूण | पक्ष में-भोत्ता, होत्ता, पढित्ता, रन्ता। .
विशेष-वररुचि ( १२. ६ ) के अनुसार केवल इय होता है। _ (१४) शौरसेनी में कृ और गम धातुओं से पर में आनेवाले क्वा प्रत्यय के स्थान में अडुअ (किसी किसी पुस्तक के अनुसार अदुअ) आदेश विकल्प से होता है। और धातु के टि का लोप हो जाता है। जैसे :-कडुअ, गडुअ । पक्ष मेंकरिय, करिदूण; गच्छिय, गच्छिदूण |
विशेष-वररुचि ( १२. १०.) के अनुसार दुअ होता है।
(१५) शौरसेनी में त्यादि के आदेश' इ और ए के स्थान में दि आदेश होता है । जैसे :-नेदि, देदि, भोदि, होदि ।
(१६) अकार से पर में यदि नियम १५ वाले इ और ए हों तो उनके स्थान में दे और दि ये दोनों आदेश होते हैं। जैसे:-अच्छदे, अच्छदि; गच्छदे, गच्छदि; रमदे, रमदि; किजदे, किन्जदि।
१. देखो-इसी पुस्तक के छठे अध्याय के वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन तथा इसी अध्याय का नियम ४ ।