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प्राकृत
षष्ठ अध्याय
१३६. (३७) मृज धातु के अन्त्य वर्ण का 'र' आदेश होता है । जैसे:-सिरह ( सृजति)
(३८) शक आदि धातुओं के अन्त्य अक्षर का द्वित्व होता है । जैसे:-सक्क, लग्ग, कुप्प, नस्स इत्यादि ।
(३६) क्त प्रत्यय के सहित तत्तद् सोपसर्ग अथवा निरुपसर्ग धातुओं के स्थान में नीचे लिखे अफुण्ण आदि आदेश होते हैं :
संस्कृत आक्रान्तः
अफुण्णो उत्कृष्टम्
उक्कोसं स्पष्टम् अतिक्रान्तः
वोलीणो विकसितः
वीसहो (वोसट्टो)
लुग्गो नष्टः
विल्हक्को प्रमृष्टः
पम्हट्टो अर्जितम्
विढतं स्पृष्टम्
छित्तं त्यक्तम्
जढं क्षिप्तम्
ह्मासि आस्वादितम्
चक्खि स्थापितम्
निमिश्र इत्यादि
रुग्णः
१. तुलना कीजिए-अवधी के 'फुरे कहत हई' से।