________________
१३१
स्मृ
वि+स्मृ वि+आ+ह
मुच
षष्ठ अध्याय कर, कूर (हेमचन्द्र के मत से मर और झूर ), भर, भल, लढ, विम्हर, सुमर, पयर, पम्हुह, सर पम्हुस, विम्हर, वीसर कोक, पोक, वाहर छड्ड, अवहेड, मेल्ल, (हेमचन्द्र के मत से उसिक्क भी) रे अव, जिल्लुञ्छ, धंसाड, णिव्वल' वेहव, वेलव, जूख, उमच्छ रणह (हेम० के मत से उग्गह) अवह, विडविड्डु, उनहत्थ' सारव, समार और केलाय सिञ्च, सिम्प | पक्ष में से पुच्छ
वञ्च रच
सिच प्रच्छ
गर्ज
बुक्क, ढिक
राज प्र+मृ नि+मृ
रग्घ, छह्य, सह, रीर, रेह, राय पयल्ल, उवेल्ल, महमह नीहर ( हेम० के अनुसार णीहर), नील, धाड, वरहाड | पक्ष में नीसर जग्ग | पक्ष में जागर आजड्ड । पक्ष में वावर
जागृ वि + आ + पृ
१. दुःखमोचन अर्थ में । देखो-'दुःखे णिव्वलः ।' हेम० ४. ९२.
२. उवहत्य से केलाय तक जितने आदेश हैं सम् और पूर्वक रच के स्थान में विकल्प से होते हैं । देखो हेम० ४. ९५.
३. वृषभ के गर्जन अर्थ में । देखो-'वृषे ढिकः।' हेम० ४. ९९. ४. गन्ध-प्रसार में।