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पञ्चम अध्याय
११० (१ ) वेव्व और वेव्वे का भी आमन्त्रण अर्थ में प्रयोग किया जाता है। जैसे:-वेव्व सहि चिट्ठसु ( हमारा आमन्त्रण है ! सखि, रुको)
. विशेष-आमन्त्रण 'अर्थ में 'वेव्वे' का प्रयोग नियम १८ के मणिउं वेव्वे वयंसेत्ति में देखा जाता है।
(२०) सखी द्वारा आमन्त्रण अर्थ में 'हला', 'मामि', और 'हले' अव्ययों का प्रयोग विकल्प से होता है । पक्ष में 'सहि' यह प्रयुक्त होता है । जैसे :-वेव्व सहि चिट्ठसु हला निसीद, मामि रम जासि कत्थ हले ? ( हमारा आमन्त्रण है, सखि, रुको ! सखि बैठो ! सखि, क्रीडा करो ! जाती कहाँ हो सखि ? ) कुमा. पा. ४. १०.
(२१) सम्मुखीकरण अर्थ में और सखी के आमन्त्रण अर्थ में 'दे' इस अव्यय का प्रयोग करना चाहिए । सामान्य संबोधन में जैसे :-दे पसिन ताव सुंदरि; सख्यामन्त्रण में जैसे :-दे पसिअ किमसि रुट्ठा ? (हे सखि, प्रसन्न होओ, रूठी किस लिए हो ?)
(२२) दान, प्रश्न और निवारण अर्थों में 'हुँ' अव्यय का प्रयोग किया जाता है। दान में जैसे :-हुं, गिण्हसु कणय-भायणयं ( मैंने दे डाला, अब तुम यह कनक-पात्र ले लो ?); प्रश्न में जैसे :-हुं, तुह पिओ न आओ ? (मैं पूछती हूँ अभी तक तेरा प्रियतम नहीं आया ?); निवारण में जैसे :-हुं, किं तेणज ( अरे हटाओ भी, उससे अब हमारा क्या मतलब ? ) :