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षष्ठ अध्याय
१२३ (११) धातु से वर्तमान, भविंध्यत् और विध्यादि अर्थवाले तिङ् यदि पर हों तो धातु और प्रत्यय के मध्य में भी ज्ज और ज्जा विकल्प से होते हैं । होज्जइ, होज्जाइ (भवति, भविष्यति, भवतु, भूयात् इत्यादि)
(१२) शतृ और शानच् इन दोनों में एक-एक के स्थान में न्त और माण ये दो आदेश होते हैं। जैसे :-पढन्तो, पढमाणो;हसन्तो, हसमाणो ( पठन् , हसन् ) . (१३) स्त्रीलिङ्ग में वर्तमान शतृ और शानच् के स्थान में ई, न्ती और माणा आदेश होते हैं। जैसे :-उवहसमाणिं सरोरुहं विहसन्ति हसई व कुमुइणिं ( उपहसन्ती, विहसन्तीम् ; हसन्तीमिव ) कुमा. पा. ५. १०६
(१४ ) वर्तमान, विध्यादि और शतृ प्रत्ययों के पर में रहने पर अकार के स्थान में एकार विकल्प से होता है । जैसे:हसेइ, हसइ, हसेउ, हसउ; हसेतो, हसंतो (हसति, हसेत् , हसन्) कहीं पर नहीं भी होता है। जैसे :-जअइ | कहीं आत्व भी होता है । जैसे:-सुणाउ ।
विशेष-शौरसेनी में धातु और तिङ के मध्य में अधिकतर ए और आ होते हैं।
(१५) भाव और कर्म में विहित यक के स्थान में 'इ' और 'इज्ज' आदेश होते हैं | जैसे :-हसिअइ, हसिज्जइ (हस्यते)
विशेष-दृश और वच के भाव और कर्म में क्रमशः दीश और वुच्च रूप होते हैं । दीसइ (दृश्यते); वुच्चइ (उच्यते)
(१६ क्त्वा, तुम, तव्य और भविष्यत् काल में विहित प्रत्यय के पर में रहने पर धातु के अन्त्य अ के स्थान में "ए"