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प्राकृत व्याकरण (१२) केवल अर्थ में 'णवर' अव्यय का प्रयोग करना चाहिए । जैसे :-सद्दो चीरीण सुव्बए णवर ( केवल झींगुरों का शब्द सुनाई पड़ता है।
(१३) आनन्तर्य अर्थ में ‘णवरि' अव्यय का प्रयोग होता है। जैसे :-गाअइ किल तस्स मिसा णवरि वसन्तस्स गिम्हसिरी। (झींगुरों की ध्वनि के बहाने वसन्त के बाद आनेवाली ग्रीष्म-शोभा हर्ष से मानो गान कर रही है ) कुमा० पा० ४.७. - (१४) निवारण अर्थ में 'अलाहि' अव्यय का प्रयोग करना उत्तम है। जैसे:-पहिआ, अलाहि गन्तुं ( पथिको, जाना व्यर्थ है अर्थात मत जाओ।) - (१५) नत्र के अर्थ में 'अण' और 'णाई' अव्ययों का प्रयोग किया जाता है । जैसे:-अण दइआण ( कान्तारहित जनों का ) । कुसलाइँ इह णाई ( यहाँ कुशल नहीं है)। . (१६) मा के अर्थ में 'माई' इस अव्यय का प्रयोग होता है । जैसे :-माई इह एध ( यहाँ मत आओ।) । (१७) 'हद्धी' यह अव्यय निर्वेद अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है । जैसे :-हद्धी, इअ व्व चीरीहि उल्लविअं _ (१८) भय, वारण और विषाद अर्थों में वेवे का प्रयोग करना चाहिए । जैसे :-समुहोट्ठिअम्मि ममरे वेव्वे त्ति भणेइ मल्लिउच्चिणिरी। वारणखेअभएहिं भणिउं वेव्वे वयंसे त्ति ( सम्मुखोत्थिते भ्रमरे वेव्वे इति भणति मल्लिकामुच्चेत्री । वारणखेदभयैः भणित्वा वेव्वे 'वयस्ये इति ।)