________________
चतुर्थ अध्याय
૭
(४६) यद् शब्द से स्त्रीलिङ्ग में आम्बर्जित विभक्तियों के पर में रहने पर ङां विकल्प से होता है । जैसे :- जी, जीया इत्यादि ।
पुंल्लिङ्ग में तद् शब्द के रूप :
बहुवचन
ते, दे
ते, दे
तेहि, रोहि तातो इत्यादि
एकवचन
प्रथमा सो
द्वितीया तं, णं
तृतीया तेण, तिणी, रोण
पञ्चमी तत्तो, तदो, ता, तम्हा, ताओ तास, से, तसे
षष्ठी
सप्तमी
तस्सि, तम्मि, तत्थ, तहिं
(४७) तद् शब्द का स्त्रीलिङ्ग में 'सा' यह रूप होता है और नपुंसक लिङ्ग
ताणं, तेसिं, सिं, दाणं तेसु इत्यादि
प्रथमा के एकवचन में में 'तं' | आमूवर्जित
:
प्रथमा - एक० स, सो; बहु० ते, ; द्वितीया-एक
१. हेमचन्द्र के अनुसार तद् शब्द के रूप निम्नलिखित हैं तं णं; बहु० ते, ता, तिणा; बहु० तेहिं इत्यादिः
पेण,
तस्स,
णे, णा; तृतीया - एक० तेण, पञ्चमी - एक० तम्हा; बहु० तेहिं तास; बहु० तास, तेसिं; सप्तमी एक० बहु० तेसु, सु, तेसुं, सुं ।
इत्यादिः षष्ठी - एक० तस्सि, ताहे, ताला, तइत्रा;
२. पैशाची में पुंल्लिङ्ग में 'नेन' और खीलिङ्ग में 'नाए' रूप होते हैं । ३. शौरसेनी में स् में तस्स, से और श्रम् में ताणं होते हैं । अपभ्रंश में ङस् के पर में रहने पर पुंल्लिङ्ग में तह और स्त्रीलिङ्ग में तासु होते हैं | टक्क भाषा में आम के पर में रहने पर 'ताहं' और 'ताणं' होते हैं ।