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चतुर्थ अध्याय अन्त्य व्यञ्जनों का लोप होता है और कुछ हलन्त शब्द अजन्त के रूप में परिणत हो जाते हैं । अतः हलन्त शब्दों के साधनार्थ विशेष नियम नहीं हैं।
केवल आत्मन् और राजन शब्दों के साधनार्थ प्राकृत के कुछ प्राचीन आचार्यों ने नियम बनाये हैं। वे ही नियम प्रयोग के अनुसार अन्य नान्त शब्दों के लिए भी उपयुक्त माने गये हैं।
राजन् शब्द के रूप:एकवचन
बहुवचन प्रथमा राआ
राआणो, राआ द्वितीया राधे
राए, राआणो तृतीया रण्णा, राइणा
राएहिं पञ्चमी राआदो, रण्णो, राआदु, राइणो राआहितो, राइहितो षष्ठी रणो, राइणो, राअस्स राआणं, राइणं, राआण्ण सप्तमी राअम्मि, राए, राइम्मि राएसु, राएसुं संबोधन हे राआ, राअं
हेमचन्द्र ( ३, ४६-५५, ) के अनुसार राजन शब्द के रूपःप्रथमा राया
राया, रायाणो, राइणो द्वितीया रायं, राइणं
राये, राया,रायाणो, राइणो तृतीया राइणा, रण्णा; राएण,राएणं राएहि-हिँ हिं; राईहि-हि-हिं पञ्चमी रणो, राइणो, रायत्तो, इ० रायत्तो, राइत्तो, इत्यादि षष्टी रणो, राइणो, रायस्स राईण, राईणं; रायाण,
रायाणं