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प्राकृत व्याकरण
एकवचन
बहुवचन सप्तमी पिअरे, पिअरम्मि, पिदुम्मि पिअरेसु, पिदुसुं संबोधन हे पिअ, हे पिअर हे पिअरा
पितृ शब्द के समान ही भ्रातृ और जामात शब्दों के रूप चलते हैं। हेमचन्द्र ( ३. ३६-४०, ४४-४८.) के अनुसार पित
शब्द के रूप :प्रथमा पिआ', पिअरो
पिअरा, पिउणो, पिअवो,
। पिअओ, पिअउ पिऊ द्वितीया पिअरं
पिअरे, पिअरा, पिउणो, पिऊ तृतीया पिअरेण, पिअरेणं, पिउणा पिअरेहि-हिं हिँ ,पिऊहिं-हि-हि
इत्यादि . इत्यादि संबोधन पिअ, पिअरं पिअरा, पिउणो, पिअवो इत्यादि
शेष विभक्तियों के रूपों का ऊह कर लेना चाहिए।
(२४ ) प्राकृतप्रकाश और प्राकृतकल्पलतिका में ईकारान्त ऊकारान्त शब्दों के साधन के लिए अलग सूत्र नहीं देखे जाते । इससे सिद्ध होता है कि उनके ( ईकारान्त-ऊकारान्त के) कार्य भी क्रमशः इकारान्त-उकारान्त शब्दों के समान ही होते हैं ।
(२५) हेमचन्द्र ने सभी विभक्तियों में किबन्त ईकारान्त-ऊकारान्त शब्दों के दीर्घ ई ऊ के लिए हस्व का विधान किया है। और केवल संबोधन के एकवचन में अपने नियम को वैकल्पिक माना है।
१. शौरसेनी में प्रथमा के एकवचन में पिदा रूप होता है। देखिए : .. 'तादकण्णो वि एदाए पिदा'-अभिज्ञान शाकुन्तल