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चतुथ अध्याय
- (२६) पुंल्लिङ्ग में गो शब्द का गाव यह रूप होता है । इस लिए इस के रूप अदन्त शब्दों के समान ही चलते हैं।
स्त्री-प्रत्यय (२७) प्राकृत में कुछ ही ऐसे शब्द हैं, जिनमें विशेष नियमों के अनुसार विशेष स्त्री-प्रत्यय आते हैं। शेष शब्दों के आगे संस्कृत के ही अनुसार स्त्री-प्रत्यय आते हैं ।
(२८) पाणिनि (४-१-१५) के अनुसार अण आदि प्रत्यय निमित्तक जो जीप होता है, वह प्राकृत में विकल्प से होता है। जैसे :-साहणी, साहणा, कुरुचरी, कुरुचरा ।
(२६) अजातिवाची पुंल्लिङ्ग नाम (प्रातिपदिक) से स्त्रीलिङ्ग को बतलाने में विकल्प से की प्रत्यय होता है। जैसे :नीली, नीला; काली, काला; हसमाणी, हसमाणा; सुप्पणही, सुप्पणहा; इमीए, इमाए; इमीणं, इमाणं; एईए, एआए; एईणं, एआणं।
विशेष—(क) कुमार्यादि में संस्कृत के समान नित्य ही ङी होता है । कुमारी, गौरी इत्यादि ।
(ख) जातिवाची में उक्त नियम के नहीं लगने से करिणी, अया, एलया इत्यादि रूप होते हैं।
(३०) छाया और हरिद्रा शब्दों में 'आप' का प्रसङ्ग (प्राप्ति) होने पर विकल्प से 'डी' प्रत्यय होता है । जैसे :-छाही, छाहा हलद्दी, हलद्दा ।
( ३१) स्त्रीलिङ्ग में स्वस्रादि' शब्दों से पर में डा प्रत्यय १. हेमचन्द्र के अनुसार 'छाया' पाठ है । देखें हेम० ३. ३४. २. स्वसा तिस्रश्चतस्रश्च ननान्दा दुहिता तथा । याता मातेति सप्तैते स्वनादय उदाहृताः ॥ सिद्धा. कौ. अनन्तस्त्री.