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चतुथ अध्याय
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विशेष-हेम० ३, २०, २१, २२ के अनुसार इदन्त-उदन्त से पुल्लिङ्ग में जस् के स्थान में डित् अउ-अओ आदेश और उदन्त से केवल डित् अबो आदेश विकल्प से होते हैं । णो आदेश भी विकल्प से होता है । डित् होने से पूर्व के 'टि' का लोप जानना चाहिए।
(१७ ) इदन्त और उदन्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से पर में आनेवाले शस् के स्थान में नित्य और ङस् के स्थान में . विकल्प से णो आदेश होता है ।
विशेष-अपभ्रंश में इदन्त-उदन्त से पर में आनेवाले 'डसि' के स्थान में 'हे', 'भ्यस्' के स्थान में 'हुँ' और ङि के स्थान में हि आदेश होते हैं ।
( १८ ) इदन्त और उदन्त शब्दों से पर में आनेवाले - 'टा' ( तृतीया-एकवचन ) के स्थान में 'णा' आदेश होता है।
विशेष-अपभ्रंश में टा के स्थान में सानुस्वार ए और ण आदेश होते हैं।
(१६ ) शेष रूपों की सिद्धि अदन्त शब्दों के समान ही जाननी चाहिए । उपर्युक्त नियमों के अनुसार इदन्त-पुंल्लिङ्ग
गिरि शब्द के रूपएकवचन
बहुवचन प्रथमा गिरी
गिरीओ, गिरिणो द्वितीया गिरि
गिरिणो · तृतीया गिरिणा
गिरीहि-हि-हिं