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________________ चतुथ अध्याय ७६ विशेष-हेम० ३, २०, २१, २२ के अनुसार इदन्त-उदन्त से पुल्लिङ्ग में जस् के स्थान में डित् अउ-अओ आदेश और उदन्त से केवल डित् अबो आदेश विकल्प से होते हैं । णो आदेश भी विकल्प से होता है । डित् होने से पूर्व के 'टि' का लोप जानना चाहिए। (१७ ) इदन्त और उदन्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से पर में आनेवाले शस् के स्थान में नित्य और ङस् के स्थान में . विकल्प से णो आदेश होता है । विशेष-अपभ्रंश में इदन्त-उदन्त से पर में आनेवाले 'डसि' के स्थान में 'हे', 'भ्यस्' के स्थान में 'हुँ' और ङि के स्थान में हि आदेश होते हैं । ( १८ ) इदन्त और उदन्त शब्दों से पर में आनेवाले - 'टा' ( तृतीया-एकवचन ) के स्थान में 'णा' आदेश होता है। विशेष-अपभ्रंश में टा के स्थान में सानुस्वार ए और ण आदेश होते हैं। (१६ ) शेष रूपों की सिद्धि अदन्त शब्दों के समान ही जाननी चाहिए । उपर्युक्त नियमों के अनुसार इदन्त-पुंल्लिङ्ग गिरि शब्द के रूपएकवचन बहुवचन प्रथमा गिरी गिरीओ, गिरिणो द्वितीया गिरि गिरिणो · तृतीया गिरिणा गिरीहि-हि-हिं
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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