________________
चतुर्थ अध्याय
(ख) शौरसेनी में ङसि के स्थान में 'आदु' आदेश होते हैं, किन्तु कल्पलतिका के 'दो' आदेश होता है ।
७७.
'आदो', और अनुसार केवल
(ग) पैशाची में ङसि के स्थान में 'आतो' और 'आत्तो" आदेश होते हैं ।
(घ ) अपभ्रंश में ङसि के स्थान में 'ह' और 'हू' आदेश' होते हैं ।
( १२ ) अदन्त ( अ से अन्त होनेवाले ) शब्द से पर में आनेवाले भ्यस् के स्थान में तो, दो, दु, हि, हिंतो और सुंतो आदेश होते हैं । जैसे : - देवत्तो, देवाओ, देवाड, देवाह, देवेहि, देवाहितो, देवेसुंतो ( देवेभ्यः )
विशेष – अपभ्रंश में अदन्त शब्दों से पर में आनेवालेभ्यस् के स्थान में 'हूँ' आदेश होता है ।
( १३ ) अदन्त शब्द से पर में आनेवाले ङस ( षष्ठीएकवचन ) के स्थान में 'स्स' आदेश होता है । जैसे :देवस्स, णउलस्स ( देवस्य, नकुलस्य )
विशेष – (क) मागधी में ङस् के स्थान में विकल्प से 'आह' आदेश होता है ।
(ख) अपभ्रंश में ङस् के स्थान में सु, हो, सो आदेश होते हैं |
( १४ ) अदन्त शब्द से पर में आनेवाले ङि ( सप्तमीएकवचन ) के स्थान में 'ए' और 'म्मि' आदेश होते हैं । जैसे :- देवे, देवेम्मि, णउले, णउलेम्मि ( देवे, नकुले )