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चतुर्थ अध्याय
[शब्दसाधन प्रकरण] ( १ ) प्राकृत में संस्कृत के समान ही पुल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग और नपुंसक लिङ्ग होते हैं।
विशेष-संस्कृत के जिन शब्दों का प्राकृत में लिङ्ग बदल जाता है, उनके विषय में इस ग्रन्थ के १-३८-४५ तक में विचार किया गया है ।।
(२) प्राकृत में संस्कृत के समान तीनों वचन न . होकर एकवचन और बहुवचन ही होते हैं ।
(३) कर्ता आदि छवों कारकों की चतुर्थीरहित विभक्तियाँ प्राकृत शब्दों के आगे प्रयुक्त होती हैं। चतुर्थी के स्थान की पूर्ति षष्ठी विभक्ति से होती है। विभक्तियों के नाम पाणिनि के नामकरण के अनुसार ही हैं ।
(४) प्राकृत में अवर्णान्त ( अ और आ से अन्त होनेवाले ), इवर्णान्त ( इ और ई से अन्त होनेवाले ), उवर्णान्त ( उ और ऊ से अन्त होनेवाले ), ऋवर्णान्त ( ऋ से अन्त होनेवाले ) तथा हलन्त (जिनके अन्त में व्यञ्जन अक्षर आये हों ) ये पाँच प्रकार के शब्द पाये जाते हैं।
विशेष-वस्तुतः प्रयोग में ऋकारान्त तथा हलन्त शब्दों की उपलब्धि नहीं होने से तीन ही प्रकार के शब्द रह जाते हैं।