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तृतीय अध्याय
वान् ) वन्त जैसे : – धणवन्तो, भत्तिवन्तो ( धनवान्, भक्तिमान् )
विशेष – (क) हेमचन्द्र के मत से भी होते हैं । जैसे :- सिरिमंतो, ( श्रीमान्, पुण्यवान्, धनवान् )
(ख) कुछ लोगां का कहना है कि इल्ल और उल्ल सार्वत्रिक न होकर पाणिनीय व्याकरण के शैषिक प्रकरण में ही आते हैं । जैसे :- पुरिल्लं ( पौरस्त्यम् ), अप्पुल्लं . ( आत्मीयम् )
( ४५ ) वति प्रत्यय के स्थान में 'व्' यह आदेश होता है | जैसे :- - महुव्त्र ( मधुवत् )
स्वार्थिक प्रत्यय |
प्राकृत
नवल्लो
एकल्लो, एकल्लो
अवरिल्लो
भुमया
भमया
सणिअं
मणिअं
प्रत्यय
ल
मणअं
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मन्त और इर आदेश पुण्णमंतो, धणिरो
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मया ।
डमया
डिअं
संस्कृत प्राकृत
प्रत्यय संस्कृत
मिसालिअ डालिअ मिश्र
दीर्घः
विद्युत्
पत्रम्
पीतम्
नवः
एक:
दीहरं
उपरि विज्जला
पत्तलं
पीवलं
शनै:
पीअलं
अंधलो मनाकू जमलं
ल
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अन्धः
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यमः
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डअं | विशेष – स्वार्थ में सभी शब्दों से क प्रत्यय होता है ।
तृतीय अध्याय समाप्त
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