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________________ २४ प्राकृत व्याकरण का लुक विकल्प से होता है और स्वर से पर में रहनेवाले तकार का द्वित्व है । जैसेप्राकृत संस्कृत किं ति किमिति यं ति . यदिति दिटुं ति दृष्टमिति न जुत्तं ति । न युक्तमिति स्वर से पर रहने पर जैसेतह त्ति तथेति पिओ त्ति प्रिय इति पुरिसो त्ति पुरुष इति विशेष-पद से पर में नहीं रहने के कारण नीचे लिखे उदाहरण में न तो इति के आदि इ का लुक हुआ और न तकार का द्वित्व ही। इसविझ-गुहा निलयाए। (५१)-जिन श, ष, स् से पूर्व अथवा पर में रहनेवाले य, र, व् , श् , ' , स् वर्णों का प्राकृत के नियमानुसार लोप हुआ हो उन शकार, षकार और सकारों के आदि स्वर का दीर्घ . हो जाता है। जैसे . * देखिए-नियम १.६६ . + इस नियम को पूर्णतः समझने के लिए हेमचन्द्र के अधोमनयाम् २.७८ अनादौ शेषादेशयोर्द्वित्वम् । २. ८६ न दीर्घानुस्वारात् । २.६२ श्रादि सूत्रों का मनन श्रावश्यक है।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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