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प्रथम अध्याय विशेष—वहुल का अधिकार आने से अर्थात् इस नियम
के प्रायिक होने से पाणीअं, अलीअं, जीअइ,
करीसो, उवणोओ ये रूप भी सिद्ध होते हैं। (७४) तीर्थ शब्द के ईकार का ऊकार तब होता है, जब कि उसके आगे का 'थ' ह हो गया हो । ह होने पर ऊकार जैसे--तूई । ह नहीं होने पर उत्वाभाव और हस्व जैसेतित्थं (तीर्थम्) __(७५) मुकुलादि गण में आदि उकार के स्थान में अकार आदेश होता है।
[प्राकृतप्रकाश में मुकुलादि गण न कहकर मुकुटादि गण कहा गया है। जैसे अन्मुकुटादिषु] मुकुलादि अथवा मुकुटादि के उदाहरण-मउलं (मुकुलम्); गरुई (गुर्वी); मउड (मुकुटम् ); जहुढिलो, जहि ढिलो (युधिष्ठिरः); सोअमल्लं (सौकुमार्यम्); गलोई (गुडूची) विशेष—कहीं कहीं प्रथम उकार का आकार भी होता
देखा जाता है । जैसे-विदाओ (विद्रुतः) जीवतु, प्रदीपित प्रसीद, शिरीष, गृहीत, वल्मीक और अवसीदन् शन्दों का उल्लेख नहीं करता। ____ * मुकुटादि गण में प्राकृतमञ्जरी के अनुसार निम्नलिखित शब्द हैं।
मुकुटं मुकुलं गुर्वी सुकुमारो युधिष्ठिरः
अगुरूपरि शब्दौ च मुकुटादिरयं गणः । + तुलना कीजिए-भाजपुरी का 'मउर' शब्द और संस्कृत का 'मौलि' शब्द।