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तृतीय अध्याय
६५ विशेष-धूर्तादि गण में उक्त नियम लागू नहीं होता है। धुत्तो, कित्ती, वत्ता, आवत्तणं, निवत्तणं, पवत्तणं, संवत्तणं, आवत्तओ, निवत्तओ, पवत्तओ, संवत्तओ, वत्तिआ, वत्तिओ, कत्तिओ, उक्कत्तिओ, कत्तरी, मुत्ती, मुत्तो, मुहुत्तो ।
( २२ ) ह्रस्व से पर में वर्तमान थ्य, श्च, त्स और प्स के स्थान में छ आदेश होता है । किन्तु निश्चल शब्द के श्च का छ आदेश नहीं होता । थ्य का छ जैसे:-पच्छं (पथ्यम्); पच्छा ( पथ्या ); मिच्छा ( मिथ्या); रच्छा ( रथ्या ) श्व का छ जैसे :-पच्छिमं (पश्चिमम् ); अच्छेरं (आश्चर्यम् ); पच्छा ( पश्चात् ) त्स का छ जैसे :-उच्छाहो ( उत्साह: ); मच्छरो ( मत्सरः ); वच्छो ( वत्सः ) प्स का छ जैसेलिच्छइ (लिप्सति ); जुगुच्छइ ( जुगुप्सते ); अच्छरा ( अप्सराः)
विशेष—(क) ह्रस्व से पर में नहीं रहने से ऊसारिओ ( उत्सारितः ) में उक्त नियम नहीं लगा।
(ख) निश्चल शब्द का णिञ्चलो रूप होता है। (ग) तथ्य का आर्ष प्राकृत रूप तत्थं और तच्चं होता है ।
( २३ ) संयुक्त द्य, य्य और र्य के स्थान में ज आदेश होता है । द्य का ज जैसे :-मजं, अवजं, वेजं, विज्जा ( मद्यम् , अवद्यम् , वेद्यम् , विद्या ) य्य का ज
१. धूर्तादि गण में धूर्त, कीर्ति, वार्ता, आवर्तन, निवर्तन, प्रवर्तन, संवर्तन, आवर्तक, निवर्तक, प्रवर्तक, संवर्तक, वर्तिका, वार्तिक, कार्तिक, उत्कर्तित, कर्तरी, मूर्ति, मूर्त और मुहूर्त शब्द परिगणित हैं। ...