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प्राकृत व्याकरण से और कहीं नित्य होता है । जैसे—रिद्धी (ऋद्धिः); रिणं, ऋणं (ऋणम् ); रिज्जू , उज्जू (ऋजुः); रिसहो, उसहो (ऋषभः); रिऊ, उदू (ऋतुः); रिसो, इसी (ऋषिः)
(८७) जिस दृश धातु के आगे कृत् के किप् , टक् और सक् प्रत्यय आये हों, उसके ऋ का रि आदेश होता है। जैसेएआरिसो, तारिसो, सरिसो, सरिच्छो, एरिसो, केरिसो अण्णारिसो अम्हारिसो, तुम्हारिसो।
विशेष-शौरसेनी, पैशाची और अपभ्रंश में इन शब्दों के रूप कुछ और ही होते हैं। शौर० जादिसं
यादृशम् तादिसं
तादृशम् पै० जातिसं
यादृशम् तातिसं
तादृशम् अप० जइशं
यादृशम्
तादृशम् (८८) किसी भी शब्द में आदि ऐकार का एकार होता है। जैसे-सेलो (शैलः); सेत्तं, सेचं (शैत्यम् ); एरावणो (ऐरावतः); तेल्लुकं (त्रैलोक्यम् ); केलासो (कैलासः); केढवो (कैतवः); वेहव्वं (वैधव्यम्) ' (८६) दैत्यादि गण में ऐ के स्थान में ए का अपवाद
तइशं
* कल्पलतिका के अनुसार दैत्यादि गण के शब्द निम्नलिखित हैं
दैत्यादौ वैश्यवैशाखवैशम्पायनकैतवाः; स्वैरवैदेहवैदेशक्षेत्रवैषयिका अपि । दैत्यादिष्वपि विशेयास्तथा वैदेशिकादयः॥