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प्रथम अध्याय
४१ अइ आदेश होता है । जैसे-*दइच्चं (दैत्यम् ); दइएणं (दैन्यम् ); अइसरिअं (ऐश्वयम् ); भइरवो- (भैरवः); दइवअं (दैवतम्); वइआलीओ (वैतालिकः); वइएसो (वैदेशः); बइएहो (वैदेहः); वइअभो (वैदर्भः); वइस्साणरो (वेश्वानरः); कैअवं (कैतवम्); वइसाहो (वैशाखः); वइसालो (वैशालः)
(६०) वैरादि गण में ऐत् के स्थान में अइ आदेश विकल्प से होता है । जैसे-वइरं, वे (वैरम् ),कइलासो, केलासो (कैलासः) कइरवं, केरवं (कैरवम् ); वइसवणो, वेसवणो (वैश्रवणः); वइसंपाअणो, वेसंपाअणो (वैशम्पायनः); वइआलिओ, वेलिओ (वैतालिकः); वइसिओ, वेसिओ (वैशिकः); चइत्तो, चेत्तो
(चैत्रः)
(६१) शब्द के आदि औकार का ओकार आदेश होता है। जैसे-कोमुई (कौमुदी); जोवणं (यौवनम्) कोत्थुहो (कौस्तुभः); सोहग्गं (सौभाग्यम् ), दोहग्गं (दौर्भाग्यम्) गोदमो (गौतमः), कोसंबी (कौशाम्बी), कोंचो (क्रौञ्चः), कोसिओ (कौशिकः)
(६२) सौन्दर्यादिगण के शब्दों में औत् के स्थान में उत्
* प्राकृतमञ्जरी के अनुसार दैत्यादि गण में निम्नलिखित शब्द परिगृहीत हैं
दैत्यः स्वैरं चैत्यं कैटभवैदेहको च वैशाखः;
वैशिकमैरववैशम्पायनवैदेशिकाश्च दैत्यादिः । + वैरादिगण में वैर, कैतव, चैत्र, कैलास, दैव और भैरव गृहीत हैं। शौरसेनी में दैव शब्द में यह नियम लागू नहीं होता ।
कल्पलतिका के अनुसार सौन्दर्यादिगण के शब्द यों हैं
सौन्दर्य शौण्डिको दौवारिकः शौण्डोपरिष्टकम् ।