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प्राकृत व्याकरण (७६) यदि गुरु शब्द के आगे स्वार्थ में क प्रत्यय किया गया हो, तो उस गुरु शब्द के आदि उकार का अ आदेश विकल्प से होता है। जैसे-गरुओ, गुरुओ (गुरुकः गुरु) स्वार्थिक क के अभाव में गुरुओ (गुरुकः । थोड़ा गुरु) होता है।
(७७) उत्साह और उच्छन्न शब्दों को छोड़कर वैसे ही अन्य शब्दों में 'त्स' और 'च्छ' के पर में रहने पर पूर्व के आदि उकार का दीर्घ ऊकार होता है जैसे-ऊसुत्रो (उत्सुकः); उसो (उत्सवः); ऊसित्तो (उसिक्तः), ऊच्छुओ (उच्छुकः। उद्गताः शुका यस्मात् सः) विशेष-उच्छाहो (उत्साहः), उच्छण्णो (उच्छन्नः) में उक्त
नियमानुसार दीर्घ ऊकार नहीं होता। (७८) दुर् उपसर्ग के रेफ का लोप हो जाने पर ह्रस्व उ का दीर्घ ऊ विकल्प से होता है । ऊकार जैसे-दूसहो, दूहो; ऊ का अभाव जैसे-दुसहो, दुहओ (दुःसहः, दुर्भगः) । विशेष—दुस्सहो विरहो में रेफ का लोप नहीं रहने से
वैकल्पिक ऊकार नहीं हुआ। (७६ ) संयुक्त अक्षरों के पर में रहने पर पूर्ववर्ती प्रथम उकार का ओकर होता है । जैसे
तोण्ड (तुण्डम् ); मोण्डं (मुण्डम् ); पोक्खरं (पुष्करम्); कोट्टिमं (कुट्टिमम् ); पोत्थअं (पुस्तकम् ); लोद्धो (लुब्धकः); मोत्ता (मुक्ता) वोक्कन्तं (व्युत्क्रान्तम् ); कोन्तलो (कुन्तलः)
* प्राकृत प्रकाश में 'उत् ओत्तुण्डरूपेषु' १०. २०. यह सूत्र है । कल्पलतिका के अनुसार तुण्डादिगण के शब्द यों परिगणित हैंतुण्डकुट्टिमकुद्दालमुक्तामुद्गरलुब्धकाः । पुस्तकञ्चैवमन्येऽपि कुम्मीकुन्तल पुष्कराः।