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प्राकृत व्याकरण विरहग्गी (विरहाग्निः); अस्सं (आस्यम् ); मुनिंदो (मुनीन्द्रो) तित्थं (तीर्थम् ); गुरुल्लावा (गुरुल्लापाः); चुएणो (चूर्णः); नरिन्दो (नरेन्द्रः); मिलिच्छो (म्लेच्छः); अहरुटुं (अधरोष्ठम् ); नीलुप्पलं (नीलोत्पलम्) विशेष—संयोग पर में नहीं रहने से आयासं ईसरो,
ऊसवो आदि शब्दों में उक्त नियम लागू नहीं
होता है। (६८) आदि इकार का संयोग के पर में रहने पर एकार विकल्प से होता है । एकार होने पर जैसे-पेण्डं, णेद्दा, सेंदूरं, धम्मेल्लं, वेण्हू, पेटुं, चेण्हं, वेल्लं । एकाराभाव में जैसे-पिण्डं, णिद्दा, सिंदूर, धम्मिल्लं, विण्हू, पिटुं, चिण्हं, विल्लं (पिण्डम् निद्रा, सिन्दूरम् , धम्मिल्लं, विष्णु, पृष्ठम् , चिह्नम् , विल्लम्) विशेष—इस नियम के अनुसार पिण्डादि में जो एत्व ।
होता है, शौरसेनी आदि में नहीं होता। उसमें
पिण्ड, गिद्दा और धम्मिलं ये ही रूप होते हैं। (६६) जब इति शब्द किसी वाक्य के आदि में प्रयुक्त होता है, तब तकारवाले इकार का अकार हो जाता है जैसेप्राकृत
संस्कृत इअजं पिअवसाणे इति यत् प्रियावसाने इअ उअह अण्णह वअणं इति पश्यतान्यथा वचनम् विशेष- इति शब्द के वाक्यादि में प्रयुक्त नहीं रहने पर
अत्व नहीं होता । जैसे-पिनो त्ति (प्रिय इति); पुरिसो त्ति (पुरुष इति)
* देखो नियम १.५०