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प्राकृत व्याकरण आकार का अकार विकल्प से होता है। यथा-जह, जहा (यथा); तह, तहा (तथा); अहव, अहवा (अथवा); उक्खअं, उक्खाअं (उत्खातम् ); चमरं, चामरं (चामरम्); कलओ, कालो (कालकः); ठविश्र, ठाविरं (स्थापितम् ); परिठविश्र, परिष्ठापि (प्रतिष्ठापितम् );संठविश्र, संठाविश्र (संस्थापितम्)पउअं, पाउअं (प्राकृतम्); तलवेण्ट, तालवेण्ट (तालवृन्तम् ); हलिओ, हालिओ (हालिकः); णराओ, णाराओ (नाराचः); वला, वलाआ (वलाका) कुमरो, कुमारो (कुमारः); खइअं, खाइअं (खादितम् ); बम्हणो, बाम्हणो (ब्राह्मणः); पुव्वएण्हो, पुव्वाण्हो (पूर्वाह्नः)
(६२) घञ् को निमित्त मानकर जहाँ आ रूप वृद्धि हुई हो, उस आदि आकार का अत्व विकल्प से होता है । जैसेप्राकृत
संस्कृत पवहो ।
प्रवाहः
पवाहो
* प्राकृत प्रकाश और कल्पलतिका के अनुसार प्रस्तार प्रहार, दावामि, चाटु, मार्जार, मराल, प्रवाह इन शब्दों के आदि आकार का भी अत्व विकल्प से होता है। कल्पलतिका के अनुसार स्थापित, पांशुर तथा माधुर्य के आदि आकार का नित्य ही अत्व होता है । शौरसेनी आदि प्राकृत के अङ्गों में कहीं अत्व का निषेध देखा जाता है । क्रमशः यहाँ उदाहरण दिये जा रहे हैं। -पत्थरो, पत्थारो (प्रस्तारः), पहरो, पहारो (प्रहारः), दवग्गी, दावग्गी (दवामिः); चडु, चाडु (चाट); मजारो, माजारो (मार्जारः); मरलो, मरालो (मरालः); पवहो, पवाहो (प्रवाहः)।-ठवित्रं (स्थापितम्); पंसुरं (पांशुरम् ); मधुरीअं (माधुर्यम्); जधा (यथा); तधा (तथा)।