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प्रथम अध्याय
. २९ (अर्पयति); एवं ओ आदेश जैसे-ओप्पियो का अभाव जैसे-अप्पिअं (अर्पितम्) ___ (५६) स्वप् धातु में आदि अ के स्थान में प्रोत् और उत् आदेश पर्याय (बारी-बारी) से होते हैं। श्रोत् जैसे-सोवइ उत् जैसे-सुवइ (स्वपिति)। __ (६०) नब् के बाद में आनेवाले पुनर् शब्द के अ के स्थान में आ और आइ आदेश विकल्प से होते हैं । जैसेप्राकृत
संस्कृत ण उणा (आ) ) ण उणाइ (आइ)
न पुनः ण उण (पक्ष में)) (६१) अव्ययों में और उत्खात,* चामर, कालक, स्थापित प्रतिस्थापित, संस्थापित, प्राकृत, तालवृन्त हालिक, नाराच, बलाका कुमार, खादित, ब्राह्मण एवं पूर्वाह्न शब्दों में आदि
* प्राकृत प्रकाश और कल्पलतिका में उक्त उदाहरणों की सिद्धि के लिए 'अदातो यथादिषु वा' सूत्र मिलता है। कल्पलतिका में यथादि गण में शब्दों की परिगणना यों की गई है
यथातथातालवृन्त प्राकृतोत्खातचामरम् । . . चाटुप्रहावप्रस्तारप्रर्वाहाहालिकस्तथा ॥
मार्जारश्च कुमारश्च मार्जारेयुकलोपिनि ।
संस्थापितं खादितञ्च मरालश्चैवमादयः ।। प्राकृतमञ्जरीकार यथादि गण की गणना इस प्रकार करते हैं
यथा चामरदावामिप्रहारोत्खातहालिकाः तालवृन्ततथाचाटु यथादिः स्यादयं गणः। ...