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प्राकृत
प्रथम अध्याय और अञ्जल्यादि* गण के शब्द विकल्प से स्त्रीलिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं। इमान्त में जैसे
संस्कृत एसा गरिमा; एसो गरिमा एष गरिमा ..
एसा महिमा; एसो महिमा एष महिमा अञ्जल्यादि में जैसे.....एसा अंजली, एसो अंजली एष अञ्जलिः
चोरिआ (स्त्री०), चोरिओ (पु०) चौर्यम् निहो (स्त्री०), निही (पु०) निधिः विही (स्त्री०), विही (पु०) विधिः
गंठी (स्त्री०), गंठी (पु०) प्रन्थिः (४५) जब वाहु शब्द स्त्री-लिङ्ग में प्रयुक्त होता है, तब उसके उकार के स्थान में आकार आदेश होता है। किन्तु जब
* अञ्जल्यादि गण में अञ्जलि, पृष्ठ, अक्षि, प्रश्न, चौर्य, कुक्षि, बलि, निधि, विधि, रश्मि और ग्रन्थि शब्द गृहीत है। रश्मिः स्त्रियां वेति कल्पलतिका । कल्पलतिकायां काश्मीरोष्म सीम शब्दाः पठिताः। + एयाए महिमाए हरिओ महिमा सुर-पुरीए ।
__-कुमा० पा० १. २६ जत्थञ्जलिणा कणयं रयणाइं वि अञ्जलीइ देइ जणो। .
-वही । १. २७ .A कणय-निही अक्खीणो रयण-निही अक्खया तह वि ।
.......... -वही । १. २७