Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 15
________________ "तो क्या आपकी लड़की आपकी बात को मानतो नहीं." दण्डनायक ने पूछा। "नहीं, ऐसा नहीं। बल्कि उसके इस विचार को अस्वीकार नहीं किया जा सकता था।'' "ऐसी कौन-सी बात धी? पहले किसी ना ने हाथ में तलवार लेकर युद्ध क्षेत्र में इटकर युद्ध किया हो और ऐसी बात उसे 'भा गयी हो तब तो शायद ऐसे विचार मन में आतं, परन्तु हमने तो सी बात सुनी नहीं:' __ ण्टनायक जी ठीक ही सोचते हैं। ऐसी एक कथा जानकर ही उसने इस विद्या के सीखने के लिए जोर डाला था, इसलिए स्वीकार करना पड़ा।" "स्त्री के युद्ध करने की बात!' टण्डनायिका ने विम्मित होकर कहा। "ही. दागहनारिमा जी. गो पाम हीं था। सी ने बताया।" हेगड़ेजी वड़ आश्वस्त होकर बोले। "वह कौन सी घटना है? किसने कही?" दण्डनायिका ने पूछा। "कही तो किसी ने नहीं। हां, एक शिलालेख की कथा पढ़ी थी उसने।" "तो यह किस्सा शिलालेख का है। कहाँ का शिन्नालख है बह? किस गजा के समय का हैं?" दण्डनायक ने प्रश्न किया। "बेलगोल में सनते हैं कि यह शिलालेख हैं। गंगवंशी राजा राचमल् के समय का। वह शिलालेख हमारे इस टोरसमुद्र के तालाब को बनानेवाले 'दो।' नामक व्यक्ति की बहू साधिवन्चे के बारे में है। दोरा के बैट लोकविद्याधर की पत्नी थी वह। उसका बाप गंगराजाओं का एक महान यान्द्रा ख्यातनामा 'यायिक' था। सानियब्वे अपने पति से अपार प्रेम करती थी, इसलिए युद्ध में शस्त्र धारण कर पति की सहधर्मिणी बन बुद्ध करती हुई 'बगियूर' नामक स्थान पर उसने अपने पति के साथ ही वीरगति पायी। इस वीरगति के पाने के उपलक्ष्य में विस्तृत विवरण के साथ प्रस्तर पर उत्कीणं एक आलेख है वहाँ । साथियब्वे का चित्र भी उत्कीर्ण है उस पर। सानियब्बे घोड़े पर सवार है और हाथ में तलवार है। हाथी पर बैठा कोई शत्रु उस पर शस्त्र-बार कर रहा है। यह केवल दो सौ वर्ष पुरानी बात है! कर्नाटक की वीर नारी की चीरगति पाने की रोमांचकारी क्या है यह । इसे ही पढ़कर उसने शस्त्र-विद्या सीखने की हठ की। मैंने भी अनुमति दे दी। हमारा धराना और उसकी माँ का घराना दोनों योद्धाओं के ही घराने हैं। काल अगर उसकी शादी होगी तो किसी योद्धा के साथ ही होगी, इसलिए उसमें भी साविधब्बे की तरह अपने पति के साथ-साथ रहकर युद्ध करने में समर्थ बनने की इच्छा होना अनुचित नहीं। इसलिए सिखाया। मेरे लिए तो बेटी और बेटा दोनों वहीं है। इसलिए जहाँ तक मुझसे बन सकता है, उसकी इच्छा मैं पूरी करता हूँ।" पट्टमहादेवी शान्तला : गाग दो :: 10

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