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प्रथम-परिच्छेद ]
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उच्चानागरी विज्जा-हरी य वइरी य मज्झिमिल्ला य ।
कोडियगरणस्स एया, हवंति चत्तारि साहाम्रो ॥१॥ से किं तं कुलाइ ? कुलाइ एवमाहिज्जति संजहा :
मढमेत्य बंभलिज्ज (बभदासिय) तियं नामेण वच्छलिज्जं तु । ततियं पुरण ठाणिज्जं चउत्थयं पन्नवाहरणयं ॥१॥ २१६ ॥"
'स्थविर सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध जो कि गृहस्थाश्रम में क्रमशः कोटिवर्ष और काकन्दी नगरी के रहने वाले और व्याघ्रापत्य गोत्रीय थे। उनसे यहां "कोटिक गण" नामक एक गण निकला, उसकी ये चार शाखाएं तथा चार कुल हैं, जैसे शाखाएँ : उच्चानागरी, विद्याधरी, वाज्री और मध्यमा तथा पहला ब्रह्मलीय, २ वस्त्रलीय, ३ वाणिज्य, ४ प्रश्नवाहन नामक कुल हुए । २१६ ।'
___ "थेराणं सुट्टिय-सुपडिबुद्धारणं कोडिय काकंवयाणं वग्यावच्चसगोत्तारणं इमे पंच थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तंजहा : थेरे अज्जइंददिन्ने, थेरे पियगंधे, थेरे विज्जाहर गोवाले कासवे गोत्तेणं, थेरे इसिदत्ते थेरे अरहदत्ते । थेरेहितो णं पियगंथेहितो एत्थ रणं "मज्झिमा" साहा निग्गया। थेरेहितो णं विज्जाहर गोवालेहितो कासवगुत्तेहितो एत्थ रणं विज्जाहरी साहा निग्गया ॥२१७॥" ___स्थविर सुस्थित सुप्रतिबुद्ध के ये पांच स्थविर शिष्य हुए, जो अपत्य तुल्य और अभिज्ञात थे। उनके नाम : स्थविर आर्य इन्द्रदत्त, स्थविर प्रिय-ग्रन्थ, स्थविर विद्याधर गोपाल काश्यपगोत्रीय, स्थविर ऋषि दत्त और स्थविर महहत्त । स्थविर प्रिय-ग्रन्थ से यहाँ 'मध्यमा शाखा" निकली और स्थविर विद्याधर गोपाल से "विद्याधरी शाखा" निकली । २१७ ।'
'थेरस्स रण अज्जइंददिन्नस्स कासवगोत्तस्स अज्जदिन्ने थेरे अंतेवासी गोयमसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जइंददिनस्स कासवगोत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासो महावच्चा अभिन्नाया होत्था, त० थेरेप्रज्जसंतिसेरिगए माढरसगोत्ते, थेरे अज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोत्ते। थेरेहितो रणं अज्जसंति
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