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2-क्या दमन का योग में कोई विधायक उपयोग है?
3-ध्यान के दौरान शारीरिक पीड़ा का विक्षेप हो तो क्या करें?
4-प्रेम संबंध सदा दुःख क्यों लाते है।
5-शिष्यत्व के विकास के लिए सदगुरू के प्रेम में पड़ना क्या शिष्य के लिए जरूरी ही है?
6-बच्चे की ध्यान पूर्ण निर्दोषता क्या वास्तविक है?
7-(क) क्या दिव्य-दर्शन (विजन) भी स्वप्न ही है?
(ख) निद्रा और स्वप्न में कैसे सचेत रहा जाये?
(ग) क्या आप मेरे सपनों में आते है?
पहला प्रश्न :
स्वच्छंद स्वाभाविक होने और जाग्रत होने के बीच मैं विरोध अनुभव क्यों करता हं?
रोध है नहीं, लेकिन तुम निर्मित कर सकते हो विरोध। जहां कोई विरोध, कोई संघर्ष न भी हो
तो मन संघर्ष बना लेता है। क्योंकि संघर्ष में रहे बिना मन जीवित ही नहीं रह सकता। स्वच्छंद और स्वाभाविक होना तुम्हें, एक सहजस्फूर्त जागरूकता देगा। कोई जरूरत नहीं है जागरूकता के लिये प्रयास करने की; वह पीछे चली आयेगी छाया की भांति। यदि तुम स्वच्छंद और स्वाभाविक रही तो वह आयेगी ही। इसके लिये अतिरिक्त प्रयत्न करने की जरा भी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि स्वच्छंद और स्वाभाविक होना स्वत: विकसित होगा जागरूक हो जाने में। या, यदि तुम जागरूक हो, तो तुम