________________
पर्युषण-प्रवचन
देखकर आप अपने जीवन से प्रेरणा एवं उत्साह प्राप्त करते हैं । महापुरुषों के जीवन से निकलने वाला दिव्य प्रकाश, एक वह प्रकाश है, जो कभी बुझता नहीं है, जो कभी मिटता नहीं । इन महापुरुषों ने यह दिव्य प्रकाश कहीं बाहर से नहीं पाया, उन्होंने इसे पाया है, अपने ही अन्दर से । त्याग की साधना से, संयम की साधना से, अहिंसा और प्रेम की साधना तथा कठोर तप की साधना से । ये महापुरुष, वे महापुरुष हैं, जिन्होंने सोने के महल छोड़कर जंगल में वृक्षों के नीचे वास किया, जिन्होंने सुखद भोग छोड़कर त्याग एवं तपस्या का कठोर जीवन अंगीकार किया, जिन्होंने विविध भोग त्याग कर योग की साधना की, और जिन्होंने अपना परिवार एवं परिजन छोड़कर विकट वनों में घोर तप किया । धन्य हैं, वे महापुरुष ! एक दिन जिनके हाथ दूसरों के लिए वरदान थे, एक दिन हजारों-हजार नेत्र जिनकी ओर आशा भरी दृष्टि से देखते थे, एक दिन जिनके हाथों से हजारों-लाखों को दान मिलता था । परन्तु एक दिन ऐसा आया कि वे स्वयं ही भिक्षा पात्र लेकर दूर-दूर घूमने लगे । द्वार-द्वार पर अलख जगाने लगे । जिनके सिर पर सदा छत्र एवं चंवर रहते थे, एक दिन ऐसा आया कि वे नंगे सिर और नंगे पैर नगर की गली-गली में घूम रहे हैं, डगर-डगर में फिर रहे हैं । परन्तु इस परिवर्तन को आप गरीबी समझने की भूल न करें । यह गरीबी नहीं, त्याग था । गरीबी में लाचारी होती है, और त्याग में स्वेच्छा होती है । गरीबी में दीनता रहती है, और त्याग में रहता है, आत्म- गौरव ।
-
अन्तकृत् दशा - सूत्र
मैं आपसे अभी कह रहा था, कि आप लोग इन पवित्र पर्व - दिवसों में महापुरुषों की जीवन गाथाएँ सुनते हैं । 'अन्तकृत् दशा - सूत्र' में और 'कल्प - सूत्र' में आप ऐसे ही महापुरुषों के जीवन चरित्रों को सुनते हैं । पर्युषणों में कहीं पर अन्तकृत्-दशा, कहीं पर कल्प- प- सूत्र और कहीं पर दोनों शास्त्रों को सुनने की परम्परा है । परन्तु मैं आपको 'अन्तकृत् दशा - सूत्र' सुना रहा हूँ । इसमें नव्वे महापुरुषों की जीवन-गाथाएँ, जीवन - कथाएँ और जीवन चरित्र हैं । इन महापुरुषों में, ५५ विराट् विभूतियों में और इन विराट् व्यक्तित्वों में वृद्ध भी हैं, तरुण भी हैं, शिशु भी हैं, नर भी हैं, और नारी भी हैं । त्याग और तपस्या की ये जीती-जागती मशालें जिधर भी निकलीं, अपना दिव्य प्रकाश बिखेरती चली गयीं । इसमें त्याग, वैराग्य, संयम, क्षमा, तप और अहिंसा की जीती-जागती ज्योतियों का भव्य दिव्य और हृदयस्पर्शी वर्णन है ।
,
Jain Education International
१२
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org