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अतिमुक्त कुमार
ही हाथ में नहीं रही, उसके पीछे भारतीय संस्कृति का सन्देश भी चमकता रहा । वह अन्याय, अत्याचार के लिए नहीं रही, दुष्टों के दलन करती रही और इसलिए वे जहाँ भी गये, वहाँ उन्होंने तलवार की विजय ही प्राप्त नहीं की, पर हृदयों को भी जीता, धर्म और संस्कृति की भी विजय प्राप्त की । जनता के दिलों को अपनी ओर मोड़ा और अपनी उच्च संस्कृति की ओर खींचा ।
इन्हीं तरुणों में से एक दिन जम्बू के रूप में भी एक तरुण आया था हमारे सामने । इस धनकुबेर ने असीम वैभव-राशि को ठोकर मार दी थी और भिक्षु बन कर राजगृही के मैदानों में नंगे पैरों घूमता रहा । यह भारत का ही एक तरुण था, जो मेतार्य मुनि के रूप में हमारे सामने आया । भगवान महावीर का आगमन हुआ और हवा ही बदल गई, वह सोई हुई आत्मा जाग उठी, उसने बन्धनों से विद्रोह कर दिया । वह चल पड़ा और जिधर से भी निकला उधर ही हीरे मोती और सुवर्ण चाँदी की वर्षा करता चला गया, हजारों लाखों आदमियों में अपना खजाना लुटाता चला गया । उन तरुणों ने जब भगवान का सन्देश सुना तो स्वर्ण-महलों को पत्थर और ढेला समझकर ठुकरा दिया । एक साधारण भिक्षु के रूप में काठ का भिक्षापात्र हाथ में लेकर उन्होंने घर-घर जाकर आवाज लगाई कि माता भोजन दे ? यह है हमारे तरुणों का आदर्श । तरुणियाँ भी पीछे नहीं थीं । चन्दना, काली, महाकाली, कृष्णा, महाकृष्णा के रूप में वे आगे बढ़ीं, फूलों-सी कोमल सेज को ठुकराया, कठोर यातनाओं को स्वेच्छा से आमंत्रित किया, भूख प्यास ने सताया तो उसे शूर वीर बन कर सहन किया और जब मौत आ गई तो स्वेच्छापूर्वक, शान्त-भाव और प्रसन्न वदन से उसका भी स्वागत किया । उन सूने पहाड़ों और बीहड़ जंगलों में अपने नश्वर शरीर को भी त्याग दिया, पर वे रुके नहीं, मौत से डर कर अपने मिशन को भूले नहीं । उन्होंने सत्य और अहिंसा के अमर सन्देश को भारत के कोने-कोने में पहुँचाया । इन तरुणों ने भारत के भाग्य का निर्माण किया है । वर्तमान काल में भी आजादी को प्राप्त करने में इन तरुणों का बहुत बड़ा हाथ रहा है । आज भारत का भविष्य आशाभरी दृष्टि से इनकी ओर निहार रहा है । आज महान् शास्त्रकारों की वाणी, हेमचन्द्राचार्य, सिद्धसेन आदि आचार्यों के ग्रन्थ पुनरुद्धार के लिए इनकी ओर देख रहे हैं । एक-एक आचार्य आपकी सारी जिन्दगी को अपने ग्रन्थों के लिए उसकी खोज के लिए माँग
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