Book Title: Paryushan Pravachan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 178
________________ धर्म का मूल : विनय में मिल गई । मैं आपसे पूछूं कि यादवों को किसने समाप्त किया ? कहने को तो कहते हैं कि द्वैपायन ऋषि ने समाप्त किया, लेकिन वास्तव में देखा जाये तो यादव जाति को उसकी अनैतिकता, अन्याय और अत्याचार ने ही समाप्त किया है । रावण को किसने मारा ? आप कहेंगे राम ने । लेकिन मैं समझाता हूँ कि रावण को मारा उसके अन्याय और अत्याचार ने, उनके अनैतिक व्यवहार ने, अन्यथा उसे मारने वाला कोई नहीं था । मानव अपने आपको जीवित रखने वाला भी स्वयं है और मारने वाला भी वह स्वयं ही है । कोई भी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र तभी तक जीवित रह सकता है, जब तक उसमें त्याग का बल है, उसका नैतिक स्तर ऊँचा है और वह सदाचार की राह पर चलता है । जब इनका जीवन भोग-विलास के दल-दल में फँस जाता है । जिन्दगियाँ गुमराह होकर भटक जाती हैं, और वे अपने जीवन की प्रामाणिकता को भूल जाते हैं तो दुनिया उनके नाम तक का बहिष्कार कर देती है, संसार के इतिहास में फिर उसको कोई याद नहीं करता । हजारों और लाखों वर्ष बीत चुके हैं, पर किसी पिता ने अपने पुत्र का नाम रावण नहीं रखा । यद्यपि रावण बहुत प्रतापी राजा था, वह सोने के महलों में रहता था, विमानों में बैठकर सैर करता था, राजा ही नहीं बल्कि देवता भी उसके चरणों की धूलि लेने को लालायित रहते थे और नत मस्तक होकर सेवा के लिए सदैव तत्पर रहते थे, इन अनन्त शक्तियों का स्वामी होते हुए भी रावण आज इतना उपेक्षित और तिरस्कृत क्यों है ? क्या कारण है इसका ? उसका बाह्य ऐश्वर्य तो अतीव विशाल था किन्तु जीवन का, सद्गुणों का ऐश्वर्य समाप्त हो चुका था; सोने के महल तो खड़े थे, किन्तु सदाचार का महल ध्वस्त हो गया था; समुद्र पर शासन अवश्य था, परन्तु विकारों पर कोई शासन नहीं था; इसी का परिणाम है कि आज कोई भी पिता अपने पुत्र का नाम रावण नहीं रखता केवल एक ही नाम नहीं; किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि इतिहास में उसके परिवार के जितने भी नाम आए हैं, उनमें से किसी का भी नाम नहीं रखा जाता । न किसी ने अपने पुत्र का नाम कुम्भकरण ही रखा है और न किसी ने विभीषण ही । न किसी ने अपनी पुत्री का नाम मन्दोदरी रखा और न किसी ने शूर्पणखा ही रखा । क्या कारण है ? रावण तो भारतवर्ष की संस्कृति एक बात पर प्रकाश डालती है, यहाँ धन की पूजा नहीं है, ऐश्वर्य की पूजा नहीं है, राजा-महाराजाओं की पूजा नहीं है, किन्तु यहाँ पर हमारे आदर्शों की पूजा है । फिर भले ही वह Jain Education International १६७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196