Book Title: Paryushan Pravachan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ समत्व - योग चली आ रही है । हम भी तो उन्हीं महान् मनीषियों की सन्तान हैं, पर उनके सदृश पवित्रता और सुन्दर विचार कहाँ हैं हमारे मानस में ? उच्च विचार और आचार को जीवन में उतारने के लिए दृढ़ मनोबल की आवश्यकता है । कष्टों से घबरा कर जो अपने कर्त्तव्य पथ से विचलित हो जाता है, वह कभी अपने उद्देश्य में सफल नहीं होता । वास्तव में देखा जाए तो प्रकृति प्रदत्त कष्ट तो बहुत कम हैं । प्रकृति तो कभी सर्दी, गर्मी और वर्षा से ही आपको परेशान करती है, पर आपके सामने जो यह अशांति का वातावरण फैला हुआ है, वह अशान्ति कहाँ से आई है ? कभी इसके उद्गम स्थान के विषय में भी विचार किया है ? पुत्र कहता है, पिता खराब है; पिता कहता है, पुत्र नालायक और मूर्ख है । सास बहू पर बरसती है. और बहू सास पर दोषारोपण करती है । वृद्ध - जन तरुणों को भला-बुरा कहते हैं कि इन्हें अपनी जवानी पर गर्व है तो नौजवान वृद्धों को कोसते हैं । कहते हैं—ये पागल हो गये हैं, इनके विचार पुरातन हैं, अतएव उनका कोई मूल्य नहीं है । शिष्य गुरु की त्रुटियाँ खोजने का प्रयत्न करता है और गुरु शिष्य को अयोग्य, अविनीत और स्वच्छन्द बताता है । एक धर्म के अनुयायी दूसरे धर्म के उपासकों पर कीचड़ के छींटे उछालते हैं, आलोचना करते हैं । मानव अपने ही साथी अन्य मनुष्यों पर व्यंग्य कसता है और मिथ्या दोषारोपण करता है । क्या हमारा जीवन इसी नुकताचीनी में समाप्त कर देने के लिए है ? अज्ञानान्धकार में भटकने के लिए है ? रोटी के एक-एक टुकड़े के लिए लड़ते रहने हेतु हमें यह जीवन नहीं मिला है । जीवन तो उन्नति-शिखर पर पहुँचने के लिए प्राप्त हुआ है । मानव का उद्देश्य उत्थान और कल्याण ही होना चाहिए । इसीलिए हमारे भारतीय ऋषि कहते हैं : “ असतो मां सद्गमय तमसो मां ज्योतिर्गमय मृत्योर्मा अमृतं गमय । " साधक असत्य से सत्य की ओर जाना चाहता है, अन्धकार से ज्ञान के प्रकाश में आना चाहता है और मृत्यु से अमरत्व की ओर बढ़ना चाहता है । उसे भौतिक सुख और असीम वैभव नहीं चाहिए, ऐश्वर्य को तो वह अपने पुरुषार्थ का खेल समझता है और इसीलिए वह इसे ठुकरा कर चल पड़ता है, अनन्त सुख और शान्ति पाने के लिए । Jain Education International १७३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196