Book Title: Paryushan Pravachan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 186
________________ समत्व-योग के प्रति उदासीन और लापरवाह होता जा रहा है । वह मांस का सेवन करता है, पर किस लिए ? इस शरीर का सेर दो सेर मांस बढ़ाने के लिए ही तो वह इस दुष्कर्म की ओर प्रवृत्त होता है । यदि शरीर कुछ सबल भी हो जाये तो उससे क्या होगा । विशालकाय राक्षसों का आज कहीं अता-पता नहीं है, पर मुट्ठी भर अस्थि-समूह वाले गाँधी को बच्चा-बच्चा आदर की दृष्टि से देखता है । आप ही विचार कीजिए, आपके वस्त्रों पर जरा-सी खून की बूंद गिर जाये तो उस समय आपकी क्या स्थिति होती है ? यदि एक मच्छर का रुधिर भी आपके वस्त्र पर लग जाये तो आप उसे शीघ्र धोकर साफ कर लेते हैं, क्योंकि आपको खून के धब्बे पसन्द नहीं हैं । जो लोग मांस खाते हैं वे भी अपने वस्त्रों पर लहू नहीं लगने देना चाहते । पर जब मांस के साथ रुधिर भी उनका आहार बनता है और हृदय पर लगता है तब हृदय दूषित होता है या नहीं ? मांस खाने का अर्थ है दया-विहीन कर्म । __कई लोग मदिरा का सेवन भी करते हैं । जिस मदिरा को वे अमृत समझकर पीते हैं, वही उनके बुद्धिनाश के हेतु बनती है । फलस्वरूप मतिभ्रष्ट होकर, अपनी सुध-बुध खोकर वह अयोग्य और भयंकर कार्य भी करने से नहीं हिचकता । ___ मानव-जीवन का यह लक्ष्य नहीं है, वह तो विकास के लिए है और जीवन का विकास तभी होगा, जब आप दूसरों के दुःख को अपना समझें, विश्व मैत्री की भावना रखें । जब 'आत्मवत्सर्व भूतेषु' का सिद्धान्त अपनाया जायेगा तो आपके मन से ये क्रूर भावनाएँ जाती रहेंगी । आपका भोजन भी सात्त्विक होगा, विचार पुनीत होंगे, आचार शुद्ध होगा और जीवन सुन्दर होगा । आप अपने मन में अहिंसा, प्रेम और करुणा का प्रकाश लेकर व्यष्टि से समष्टि की ओर बढ़ेंगे, तभी आत्मा का कल्याण हो सकेगा और जीवन भी सार्थक होगा । तभी आप सही अर्थ में मानव कहलाने के अधिकारी होंगे । mme Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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