Book Title: Paryushan Pravachan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 189
________________ पर्युषण-प्रवचन का और स्वास्थ्य का प्रश्न आये तो वहाँ भी रुपये का हिसाब लेकर बैठ जाना ठीक नहीं है । यह जीवन का विकार है, वह धन मनुष्य के मन में विकार के रूप में फैला गया है । एक बार एक सज्जन आये । बातचीत के सिलसिले में उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी एक लम्बी अवधि से बीमार थी, क्षयरोग उसके शरीर में फैलता जा रहा था । वे सज्जन चिकित्सा हेतु डाक्टर, वैद्यों के पास चक्कर काटते रहे, रोग का उपचार करवाया, किन्तु वह बच नहीं सकी । तो वे कहे लगे कि मरने वाली तो मर गई, पर हमें भी मार गई । - मैंने कहा – “तुम्हें कैसे मार गई ? तुम तो यहाँ सही सलामत बैठे हो ।" सज्जन ने उत्तर दिया – “महाराज ! मार तो क्या गई, पर उसकी बीमारी में बहुत भाग-दौड़ करनी पड़ी है । इस भाग-दौड़ में जो हमारी मूल पूँजी थी, वह भी समाप्त हो गई और भविष्य के लिए भी कुछ अर्जन न कर सके । यदि उसे मरना ही था तो पहले ही मर जाती ताकि हमें धन के अभाव में कष्ट तो न उठाना पड़ता । उसको तो मरना ही था पर इस तरह हम तो न मरते ।" मैंने विचार किया और कहा - "तुम एक पति की दृष्टि से नहीं बोल रहे हो, तुम्हारा दृष्टिकोण भिन्न है, तुम मानव जीवन की अपेक्षा धन को प्रधानता दे रहे हो ।" जीवन में कुछ सीमाएँ होती हैं धन की भी और सुरक्षा की भी । जीवन में कुछ परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं, जहाँ इसका विचार किया जाता है, किन्तु प्रत्येक क्षेत्र में यदि धन को ही सर्वस्व मानकर चलना प्रारम्भ कर दें, तो कहना होगा कि जीवन के प्रति आपका सही दृष्टिकोण नहीं है । आपने कर्म तो किया है, किन्तु उसके आनन्द को, रस को समाप्त कर दिया है । एक ओर तो सेवा सुश्रूषा के लिए पैसा खर्च कर आपने सोने का महल खड़ा किया है और दूसरी ओर इस प्रकार की बातें कहकर उसे भस्म कर दिया है । घर में और जीवन में आपने सेवा के रूप में सोने का कल्पवृक्ष खड़ा किया है । यह कल्पवृक्ष आपकी सद्भावनाओं का केन्द्र होता, जीवन में उसका सौन्दर्य, चमक एवं माधुर्य बना रहता, परिवार में तथा अन्य जनों के लिए भी वह महत्वपूर्ण होता, किन्तु 'मरने वाला तो मर गया, Jain Education International १७८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196