Book Title: Paryushan Pravachan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 192
________________ आवश्यकता और तृष्णा ध्यान नहीं जाता । वह अपने उत्तरदायित्त्व को, कर्त्तव्य को भी भूल जाता है । आसक्ति के प्रवाह में बह कर वह प्रतिभा और बुद्धि का भी उपयोग नहीं करता । हाँ, तो आसक्ति द्वारा हम जीवन के सही लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते । निष्काम कर्म ही हमारे मानव में कर्तव्य के प्रति सजगता की भावना जागृत करता है । आसक्ति ऊपर उठाने वाली नहीं, अपितु नीचे गिराने वाली है । उत्थान का मार्ग अनासक्त-भावना ही है । जब मनुष्य अपने कर्तव्य को समझेगा और अपने को इस संसार-रथ का एक छोटा-सा यंत्र मान कर ठीक ढंग से कार्य करेगा तो वह इस विराट् संसार-रथ को चलाने में सहायक सिद्ध होगा । यदि वह अपने कर्तव्य को भली-भाँति न समझे तो जीवन में गड़बड़ पैदा हो जायेगी । अतः मानव जब अपने आपको संसार का एक महत्त्वपूर्ण पुर्जा समझकर अनासक्त-भावना से काम करता है, तभी वह जीवन के सही लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो सकता है । सही दृष्टिकोण ___ एक आचार्य ने मानव-जीवन का विश्लेषण करते हुए अलग-अलग भूमिकाएँ बांधी हैं । संसार में कुछ मनुष्य बुराइयों से बच कर चलते हैं, पर उनका वास्तविक दृष्टिकोण क्या है ? वे बुराइयों से दूर भागने का प्रयत्न क्यों करते हैं ? उन्होंने बहुत सुन्दर ढंग से अपने विचार व्यक्त किए हैं । कल्पना कीजिए कि एक व्यक्ति की आर्थिक स्थिति कमजोर है, वह दरिद्रता की चक्की में पिस रहा है । दूसरा व्यक्ति उससे पूछता है कि क्यों भाई, क्या बात है ? तुम इतने कमजोर क्यों दीखते हो ? वह कहता है-“क्या करूँ ? अर्थाभाव के कारण कष्ट सहने पड़ते हैं । पास में एक पैसा भी नहीं है, अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करूँ ? इस समय तो जहर खाने के लिए भी पैसा नहीं है ।" पहले ने कहा- "इतने चिन्तित क्यों ? इस संसार में, न्याय-नीति और धर्म में क्या रखा है ? इसका मूल्य ही क्या है, जब हम भूखों मर रहे हों । संसार में तुम चोर-बाजारी, गुंडागिरी और मक्कारी करके संसार के भोग-विलास प्राप्त कर सकते हो । इस गरीबी से छुटकारा पा सकते हो, आराम से रह सकते हो । न्याय-नीति से आजीविका चलनी दूभर - -- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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