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धर्म का मूल : विनय
लोग कहते हैं, भगवान हमारे हृदय में निवास करे । जहाँ आप भगवान का निवास-स्थान बनाना चाहते हैं, उस हृदय में आपने कभी झाँक कर देखा है ? कितनी गन्दगी भरी पड़ी है आपके मन-मन्दिर में ? कितना काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार भरा हुआ सड़ रहा है और गन्दगी इतनी फैल रही है कि एक आदमी भी आपके पास अच्छी तरह नहीं बैठ सकता । आपके माता-पिता, पत्नी बच्चे जब आपके पास शान्तिपूर्वक बैठे हों तो आपके हृदय में विकारों की आग कैसे धधक उठती है ? आपके पड़ौसी बच्चों के लिए आपके हृदय में कितना स्थान है ? जब आपके हृदय में अपने निकटतम सम्बन्धी जनों के लिए भी स्थान नहीं है, तो फिर भगवान आपके उस हृदय में कैसे निवास करेगा ?
मैं कहता हूँ कि राम और रावण को एक साथ सिंहासन पर नहीं बैठाया जा सकता । सिंहासन पर या तो आप रावण को बैठा लीजिए या राम को बैठा लीजिए । किसी एक को बैठा सकते हैं, राम को या रावण को । या तो अपने हृदय में भगवान को बैठा लीजिए या शैतान को, किन्तु दोनों एक साथ एक ही सिंहासन पर नहीं बैठ सकते । आप चाहे उस सिंहासन पर क्रोध, लोभ आदि विकारों को बैठा लीजिए, रावण या शैतान के रूप में, या फिर उस सिंहासन पर त्याग-तप, संयम, सदाचार आदि सद्गुण स्वरूप भगवान को, राम को बैठा लीजिए । एक ही साथ आप हिंसा और अहिंसा, अभिमान और क्षमा, नरक और स्वर्ग, लोभ और उदारता की पूजा नहीं कर सकते हैं । जीवन में या तो सदाचार की पूजा कीजिए या दुराचार की । जिन्होंने दुराचार की पूजा की है, उनके जीवन का इतिहास और परिणाम भी आपके सामने है और सदाचार की पूजा करने वाले महापुरुषों की जीवन-गाथाओं को भी आप सुन रहे हैं । उन महापुरुषों के साथ आपका जाति और रक्त का सम्बन्ध नहीं है, शरीर का सम्बन्ध नहीं है, पर त्याग-तप और सदाचार का सम्बन्ध है, आत्मा का सम्बन्ध है । इसलिए जहाँ भी आपको सद्गुण दृष्टिगोचर हों, सद्भावना अर्पण करना आपका काम है ।
__ आज व्यक्ति का जीवन बुराइयों से घिरा हुआ है, उसके जीवन में राग-द्वेष, घृणा, वासना और विकारों का बोलबाला है । वह बारूद के ढेर पर बैठा है, अग्नि जल रही है और बारूद में आग लगाई जा चुकी है फिर भी वह आनन्द विभोर होकर आनन्द और उल्लास गाये जा रहा है तो इससे बढ़कर दीवानापन और क्या होगा ? आज शान्ति के नारे
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