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पर्युषण-प्रवचन
रहा है । संसार के महान् विचारकों और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों में उनका उच्च स्थान है । इतने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ, उच्च विचारों और संकल्पों का संकलन, ज्ञान का सागर आपके सामने है, आज संसार के सामने इन जैन ग्रन्थों का उल्लेख नहीं हो रहा है, तो इसका उत्तरदायित्व किस पर है ? महावीर पर है कि आप पर है ? करोड़ों और अरबों का वैभव, असीम वैभव पिता ने विरासत में अपने पुत्रों को अर्पण किया है और ये पुत्र हैं कि उस अपार सम्पत्ति का मूल्य नहीं समझते । इसका उत्तरदायित्व पिता पर डालोगे कि आप अपने ऊपर लोगे ?
आज भी एक विशाल खजाना, ज्ञान की अपूर्व सम्पत्ति, विचारों का एक अविरल-स्रोत हमारे पास है । सम्भव है धार्मिक आचार-विचार कालक्रम से शिथिल हो गया हो फिर भी जो कुछ बचा है उसमें चमक शेष है । आज भी संसार को देने के लिए बहुत कुछ है । अहिंसा और सत्य का सन्देश आज संसार में शान्ति स्थापित कर सकता है, अनेकान्तवाद संसार के झगड़ों को निपटाने के लिए तैयार है, जीवन के विभिन्न संघर्षों और भयंकर स्वार्थों को शान्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण सन्देश हमारे पास है, पर उन सन्देशों को संसार में कोई सुनाने वाला चाहिए । काम करने के लिए, सन्देश सुनाने के लिए सन्देशवाहकों की आवश्यकता तो है ही । आप धर्म का उत्तरदायित्व समझिये, इसे अपने कन्धों पर लीजिए और पार लगाइए ।
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