Book Title: Paryushan Pravachan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 143
________________ मार्ग और मंजिल कोई भी साधक जो साधना के मार्ग पर कदम बढ़ाए चल रहा है, वह अपनी मंजिल के बारे में जानना चाहता है कि उसकी मंजिल कहाँ है ? उसकी साधना का लक्ष्य क्या है ? वह जो चल रहा है तो उसके चलने के पीछे प्रेरणाएँ क्या हैं ! भावनाएँ क्या हैं । कौन से आदर्श उसे अपनी ओर खींच रहे हैं । मैं समझता हूँ कि ये प्रश्न कुछ गहरे हैं, इन पर गहराई से विचार करना चाहिए । जब तक हमारी दृष्टि आत्मा के दर्शन नहीं करके बाहर ही बाहर घूमती रहेगी, इधर -उधर दौड़ती रहेगी, तब तक इन प्रश्नों का समाधान नहीं पा सकेगी । जिनत्व का दर्शन जैन दर्शन और जैन साधना अपने अन्दर में ही डूबना चाहती है, वह निज में ही 'जिन' को देखती है । 'जिनत्व' के दर्शन करती है । वह आत्मा में परमात्मा की झांकी देखती है । और अपने निश्चय का दर्शन भीतर ही कर लेती है । साधना की प्रेरणाएँ और भावनाएँ अपने अन्दर से ही छलक आती हैं । एक शब्द में जैन धर्म की साधना जीवन से भागने की नहीं, जीवन को बदलने की साधना है । वर्तमान जीवन जो सुख - दुःख, आधि-व्याधि से घिरा है, उस जीवन में सुख और महाप्रकाश के दर्शन कराने की यह साधना है । प्रकाश और अमरत्व की ओर लक्ष्य बाँधे बैठने वाला साधक, कभी-कभी आनन्द की हिलोरों में आकर गा उठता है - असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्मा अमृतं गमय मुझे असत् से सत् की ओर ले चलो, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो, और मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो । Jain Education International भारत के सभी आस्तिक दर्शनों के समक्ष परमात्मा की खोज दूसरे शब्दों में परमआनंद की खोज करना प्रमुख लक्ष्य रहा है । कुछ दर्शन ईश्वर से साक्षात् करने तक ही चले, और उसके बाद वे कहीं गहरे १३२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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