Book Title: Paryushan Pravachan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 159
________________ पर्युषण - -प्रवचन करो कि इस जीवन के आनन्द के साथ परलोक का आनन्द भी नष्ट न हो । उसकी भी व्यवस्था तुम्हारे हाथ में रह सके । जैन पर्वों का यही अन्तरंग है कि वे आदमी को वर्तमान में भटकने नहीं देते, मस्ती में भी उसे होश में रखते हैं और बेचैनी में भी । समय - समय पर उसके लक्ष्य को जो कभी प्रमाद की आँधियों से धूमिल हो जाता है, स्पष्ट करते रहते हैं । उसको दिङ्मूढ़ होने से बचाते रहते हैं, और प्रकाश की किरण बिखेर कर अंधकराछिन्न जीवन को आलोकित करते रहते हैं । नया साम्राज्य त्रिपिटक साहित्य में एक कथानक आता है कि भारत में एक ऐसा सम्राट् था, जिसके राज्य की सीमाओं पर भयंकर जंगल थे, जहाँ पर हिंस्र वन्य पशुओं की चीत्कारों और दहाड़ों के आस-पास के क्षेत्र आतंकित रहते । यहाँ एक विचित्र प्रथा यह थी कि राजाओं के शासन की अवधि पाँच वर्ष की होती । शासनावधि की समाप्ति पर बड़े धूम-धाम और समारोह के साथ उस राजा और उसकी रानी को राज्य की सीमा पर अवस्थित उस भयंकर जंगल में छोड़ दिया जाता था, जहाँ जाने पर बस मौत की स्वागत में खड़ी रहती थी । एक राजा को जब गद्दी मिली खूब जय-जयकार मनाए गए, बड़ी धूम-धाम से उसका उत्सव हुआ । किन्तु राजा प्रतिदिन महल के कंगूरों पर से उस जंगल को देखता और पाँच वर्ष की अवधि के समाप्त होते ही आने वाली उस स्थिति को सोच-सोचकर काँप उठता । राजा का खाया पीया जलकर भस्म हो जाता, और वह सूख - सूख कर काँटा होने लग गया । एक दिन कोई बूढ़ा दार्शनिक राजा के पास आया और राजा की इस गम्भीर व्यथा का कारण पूछा । जब राजा ने दार्शनिक से अपनी पीड़ा का भेद खोला कि पाँच वर्ष बाद मुझे और मेरी महारानी को किस प्रकार जंगली जानवरों का भक्ष्य बन जाना पड़ेगा, बस यही चिंता मुझे मारती है । दार्शनिक ने राजा से कहा- पाँच वर्ष तक तो तेरा अखण्ड साम्राज्य है ? तू चाहे जैसा कर सकता है ? राजा ने कहा- हाँ, इस अवधि में तो मेरा पूर्ण अधिकार है, मेरा आदेश सभी को मान्य होता है । Jain Education International दार्शनिक ने बताया तो फिर अपने अधिकार का उपयोग क्यों नहीं किया जाय उन समस्त जंगलों को कटवा कर साफ करवा दो और वहाँ पर नया साम्राज्य स्थापित कर दो, अपने लिए महल बनवालो, जनता के १४८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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