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पर्यों का सन्देश
रहने के लिए भी आवास बनवाकर अभी से उस जंगल को शहर के रूप में आबाद कर दो । जबकि तुम्हें पूर्ण अधिकार है और विधान व परम्परा के अनुसार जब तुम्हे अवधि समाप्त होने पर जंगल में छोड़ा जाए तो हिंस्र पशुओं की गर्जनाओं व आतंक की जगह नागर जनों का मधुर स्वागत, धन व ऐश्वर्य क्रीड़ा करता मिलेगा । राजा को यह बात जच गई और तत्काल आदेश देकर जंगल को साफ करवा दिया, वहाँ पर सुन्दर-सुन्दर भवन, उद्यान आदि से नगर को खूब ही सजा दिया गया । अब राजा बहुत प्रसन्न रहने लगा, अपने उस नगर को देखता तो पुलकित हो उठता । पांच वर्ष की अवधि सम्पूर्ण हुई । जहाँ अन्य सम्राट अवधि समाप्त होने पर रोते बिलखते थे. वहाँ यह हँस रहा था । विधानानसार पाँच वर्ष की अवधि समाप्त होने पर राजा अपने ही द्वारा निर्मित उस नए साम्राज्य में जो कभी भयंकर जंगल था जाने लगा तो नगर के हजारों नर-नारी उसके पीछे हो गए । उस नवनिर्मित नगर के आकर्षण व सौन्दर्य के कारण लोग वहाँ जाकर बसने लगे राजा आनन्द से रहने लगा ।। __यही बात जीवन की है । इस संसार से परे आगे नरक की भीषण-यातनाएँ, ज्वालाएँ हमें अभी से बेचैन कर रहीं हैं और हम सोचते हैं कि आगे नरक में यह कष्ट देखना पड़ेगा । किन्तु यह नहीं सोचते कि उस नरक को बदल कर स्वर्ग क्यों न बना दिया जाय ! यह सच है कि यहाँ से एक कौड़ी भी हमारे साथ नहीं जाएगी । किन्तु इस जीवन में रहते-रहते तो हम वहाँ का साम्राज्य बना सकते हैं । इस जीवन के तो हम सम्राट हैं. शहंशाह हैं । यह ठीक है कि इस जीवन के बाद मौत की भयंकर घाटी है, नरक आदि की भाषण यंत्रणाएँ हैं, जो जीव को उदरस्थ करने की प्रतीक्षा में रहती हैं, किन्तु यदि मनुष्य अपने इस जीवन की अवधि में दान दे सके, तपस्या कर सके, त्याग, ब्रह्मचर्य, सत्य आदि का पालन कर सके, साधना का जीवन बिता सके, और इस प्रकार पहले से ही आगे की तैयारियाँ करके प्रस्तुत रहे तो इस संसार की यात्रा में, इस जीवन में उसे हाय-हाय करने की आवश्यकता नहीं रहती । यह वर्तमान के साथ भविष्य को भी उज्ज्वल बना सकता है, उसके दोनों जीवन आनन्दमय हो सकते हैं । पर्युषण की फल-श्रुति
इस प्रकार जितने भी पर्व, त्यौहार आते हैं, उनका यही संदेश है कि
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