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नारी - जीवन
पड़ता । तो देश के लिए यह भी आवश्यक है कि बौद्धिक शक्ति भी चाहिए और धन भी चाहिए ।
इसके लिए भारतवर्ष के मनीषियों ने तीन देवियों को चुना । संसार की शक्ति कौन ? दुर्गा है । और वह दुर्गा है, जिसका नाम लेते ही एक विराट शक्ति समाज के सामने खड़ी हो जाती है । उसका आदर्श है कि संसार के अन्दर अन्याय और अत्याचार जो भी हैं, जो कुछ भी खराबी है, बुराई है, उसको खत्म कर देना एक ही झोके में । तो उस विराट शक्ति का प्रतिनिधित्व करने के लिए आप में से किसी देवता को खड़ा नहीं किया गया । देवी को खड़ा किया गया है । और जब बौद्धिक प्रश्नों के समाधान का समय आता है, तो वहाँ भी देवी का ही नाम लिया गया है । सरस्वती बौद्धिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है । वह सरस्वती, जिसके गले में मोतियों की माला है और हाथों में वीणा के तार, हंस जिसका वाहन है; वही सरस्वती हजारों, लाखों और करोड़ों वर्षों से साहित्यिक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती चली आ रही है । इसी प्रकार संसार में धन के उत्पादन का प्रश्न आया तो वहाँ भी देवियों को आगे लाकर खड़ा कर दिया गया । वह देवी के रूप में, नारी के रूप में, लक्ष्मी के रूप में सामने आई । तो मैं आपसे कह रहा था कि उन दार्शनिकों, विचारकों ने जो चिन्तन और मनन किया है या विचार के क्षेत्र में जो कल्पनाएँ उठाई हैं, वे कितनी महान हैं, सही हैं ।
पश्चिम में नारी को महत्वपूर्ण स्थान दिया है । प्राचीन भारतवर्ष में भी नारी को महत्वपूर्ण स्थान पर पहुँचाया गया है दुर्गा के रूप में क्या ? सरस्वती के रूप में क्या ? लक्ष्मी के रूप में क्या ? उसकी लाखों वर्षों से पूजा होती रही है ? किन्तु उस नारी की आज भारतवर्ष में क्या दशा है । वह नारी, जो कि जीवन में प्रेम की, क्षमा की, दया की, सद्भावना की एक धारा बहा देती है, उसकी आज क्या दशा है ? आप देखेंगे सुबह होते ही वह उठकर गृह कार्य में जुट जाती है । मैले बरतन साफ किए फिर चूल्हा जलाया और भोजन बनाने में जुटी । खूब गर्मी है । आग बरस रही है फिर भी वह भट्टी के पास बैठी है और पसीने से तरबतर हो रही है, परन्तु यह गंगा उसे सहन कर रही है । सुन्दर पद्धति से भोजन तैयार करने में संलग्न है । भोजन तैयार होता है । सास ससुर आ रहे हैं, वह उनको बड़े प्रेम से, सद्भावना से, जो कुछ भी सुन्दर बना है, वह उनके सामने रख देती है बड़े आदर से, भक्ति
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