Book Title: Paryushan Pravachan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 130
________________ सुदर्शन का अभय-दर्शन ले लिया कि इस उपद्रव की अवधि तक अठारह प्रकार के ही पाप करने का प्रत्याख्यान करता हूँ, और वहीं कायोत्सर्ग करके खड़ा हो गया । प्रेम की विजय अर्जुन माली ने आज पहली बार ऐसा पुरुष देखा जो मौत के सामने देखकर इधर-उधर भागने का प्रयत्न न करे, रोना चिल्लाना कुछ भी न करे, अपितु धैर्य के साथ सीना तान कर जैसे मौत को ही ललकारने लगा हो । उसके शरीर में मुद्गर-धारी राक्षस का बल था, खून की प्यास जगी हुई थी, सुदर्शन पर लपकता हुआ जोर-जोर से बोल रहा था—आज यह अभागा मेरी प्यास बुझाने आया है, बहुत दिनों से कोई भी शिकार नहीं आया, आज इसकी खबर लूँ यह कहकर ज्योंही सुदर्शन पर उसने अपना मुद्गर उठाया तो वह उठा ही रह गया, कुछ पीछे हटकर उसने जोर लगाना चाहा, किन्तु हाथों को तो जैसे लकवा मार गया हो, मुद्गर चला नहीं, अर्जुन माली हतप्रभ-सा होकर सोचने लगा यह क्या हुआ ? वास्तव में सुदर्शन के धैर्य और तेज के सामने मुदगर-पाणि यक्ष निस्तेज हो गया । उसका हिंसक और क्रूर मानस इस प्रेम के पुतले के समक्ष बदल गया और वह अपना बल-वीर्य समेट कर अर्जुन माली के शरीर से निकल कर कूँच कर गया । यह घटना हमें कितना साफ बता रही है कि हिंसा का बल चाहे जितना जबर्दस्त हो, वह अहिंसा के सामने टिक नहीं सकता । क्रूरता चाहे जितनी उग्र हो, किन्तु प्रेम की शीतलता के सामने उसी प्रकार शान्त हो जाती है, जैसे पानी के सामने प्यास । संसार में हमेशा ही प्रेम शक्ति का साम्राज्य चला है, उसके सामने बड़े-बड़े क्रूर-कर्मा, लुटेरे, डाकू भी विनत हुए हैं और अहिंसक बने हैं । बौद्ध साहित्य में ऐसी ही एक घटना का सम्बन्ध भगवान बुद्ध के साथ दिखाया गया है, जिसमें अंगुलीमाल डाकू जो मनुष्यों की अंगुलियों की माला बनाकर गले में पहना करता था और उसकी आँखों में खून टपकता था । वह बुद्ध को मारने दौड़ता है, किन्तु उनके तेजस्वी व्यक्तित्व के समक्ष हतप्रभ होकर बुद्ध का उपदेश सुनता है और अहिंसा का पुजारी बन जाता है । इससे यह मान लेने की जरूरत नहीं कि किसी एक ने इस घटना का अनुकरण किया होगा । बल्कि यह तो अहिंसा और प्रेम की विजय कहानियाँ हैं, जो एक दो क्या असंख्य भी इसी प्रकार की हो ११६ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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