________________
पर्युषण-प्रवचन
-
-
वाली शक्ति को गणधर कहा जाना स्वाभाविक है । भगवान के ग्यारह गणधर थे, जिनमें आर्य सुधर्मा पञ्चम गणधर थे । आज जितना भी श्रुत उपलब्ध है, वह सब हमें सुधर्मा से ही मिला है । अतः आर्य सुधर्मा का श्रमण-संस्कृति में बहुत ही गौरवपूर्ण स्थान माना जाता है । इसी आधार पर प्रस्तुत अन्तकृत् सूत्र के प्रवक्ता आर्य सुधर्मा को माना गया है । आर्य जम्बू कुमार
जम्बू कुमार को श्रमण-संस्कृति में अनासक्त योगी, परम वैरागी और परम योगी कहा गया है । अपने विशाल वैभव, विराट ऐश्वर्य, भव्य प्रासादों और मनोहारिणी रमणियों को छोड़कर उन्होंने आर्य सुधर्मा का शिष्यत्व स्वीकार किया था । राजगृही नगरी के ये उस युग के धन कुबेर थे । एक बार आर्य सुधर्मा की दिव्य वाणी सुनकर, और भव के विभव-भावों से विमुक्त होकर साधना के कठोर मार्ग पर चल पड़े । उन्होंने संयम की, साधना की और अन्त में विमल कैवल्य की ज्योति प्राप्त की एवं प्रस्तुत अवसर्पिणी काल के चरम केवली हुए । अन्तकृत् का कथासूत्र
उस काल और उस समय में, जबकि जैन काल-गणना की दृष्टि से अवसर्पिणी काल का चतुर्थ आरा चल रहा था और चरम तीर्थकर भगवान महावीर इस जगती-तल पर जगत के जीवों को आत्म-कल्याण के लिए मधुर देशना से जागृत कर रहे थे । उस युग की बातें मैं आपसे कर रहा हूँ, जिसे श्रद्धा-शील भारतीय जनता सत्य-युग और धर्म-युग के नाम से सम्बोधित करती है । अन्तकृत् सूत्र का सबसे पहला वाक्य है-"तेणं कालेणं तेणं समयेणं चम्पा णामं नयरी होत्था ।'
उस युग में भारत की अन्य नगरियों में चम्पा नगरी भी यो. जो विशाल, विराट और सर्व प्रकार से समृद्ध थी । जैन साहित्य में और बौद्ध साहित्य में इसका सुन्दर वर्णन उपलब्ध होता है । चम्पा नगरी के उत्तर-पूर्व दिशा-भाग में एक अत्यन्त रमणीय सुन्दर उपवन था, जिसे लोग पूर्ण भद्र चैत्य कहा करते थे । आगे का कथा-सूत्र है-"तीसेणं चंपाए नयरीए कोणिए नामं राया होत्था ।" भारत के प्राचीन इतिहास के अनुसार चम्पा नगरी अंग देश की राजधानी थी । अंग देश का सम्राट
३८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org