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कर्मयोगी श्रीकृष्ण
की हिम्मत रखता है, और जिसे अपनी अन्तर शक्ति के महास्रोत पर विश्वास है उसका जन्म कारागार में हो चाहे मौत के पंजे के बीच में हो, वह आगे बढ़ जाता है, वह चाहे ग्वालों और ग्रामीणों में भी रहे तो क्या अपनी अन्तर की शक्तियों को पहचानता है, वह साधनों के अभाव और परिस्थितियों की प्रतिकूलता का रोना नहीं रोता । अन्धकार में प्रकाश ___ यदि श्रीकृष्ण के जीवन को देखकर और याद करके भी किसी हताश के दिल में आशा और साहस का संचार नहीं होता है, अन्धकार में भी प्रकाश किरणें दिखलाईं नहीं पड़ती हैं तो समझना चाहिए कि उसमें देखने की शक्ति नहीं है ।
कभी-कभी ऐसा होता है कि घर में पुत्र-जन्म होता है और उस बच्चे का पिता कोई काम करता हुआ उसमें सफल नहीं होता, या कहीं कोई नुक्सान हो जाता है तो बच्चे के जन्म को ही अपशकुन और उस असफलता का कारण मान बैठते हैं । थोड़ी-सी गड़बड़ी होने पर लोग निमित्त के चक्कर में पड़ जाते हैं कि बच्चे की जन्मपत्री दिखाने लगते हैं
और सोचते हैं कि यह पुत्र कुल का क्या भला, बुरा करेगा । इस प्रकार लोग थोड़े से अभाव और संघर्ष में फँस जाने पर चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार देखने लगते हैं । वे भूल जाते हैं कि अच्छे दीखने वाले बुरे निकल जाते हैं तो बुरे चिह्न दीखने वाले अच्छे भी निकलते हैं । जन्म से कोई भी बच्चा रावण और कंस नहीं होता, वातावरण और संस्कारों के कारण ही वह वैसा बनता है । पापी और दुष्ट भी अच्छे बन जाते हैं, खून से रंगे हाथ रहने वाला राजा परदेशी का जीवन भी इस प्रकार का पट बदलता है कि देखने वालों की आँखों पर विश्वास नहीं हो पाता । इस प्रकार हमेशा जीवन का दुर्बल पक्ष, ही नहीं देखना चाहिए, किन्तु उसके प्रकाशमय स्वरूप पर भी विचार करना चाहिए । अन्धकार में भी प्रकाश का दर्शन करके भविष्य को उज्जवल बनाने का आशावादी दृष्टिकोण रखना चाहिए । प्रतिकूलताओं से संघर्ष
श्रीकृष्ण के जीवन में विपरीत परिस्थितियों का चक्रवात आता है तूफान आता है, पद-पद पर प्रतिकूलताएँ उन्हें सताती हैं, किन्तु इन सब
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