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पर्युषण-प्रवचन
से प्रवेश करना चाहिए । मैंने उन्हें बताया कि यदि मेरे मन में और तुम्हारे मन में शूल नहीं है तो फिर शूलों से बचाव हो जाएगा, उसकी कोई चिन्ता नहीं है । अगर शूल लगेंगे भी तो उन्हें या तो निकाल कर बाहर कर दिया जायगा या फिर लगे ही रहने देंगे । मैंने सामने के ही द्वार से प्रवेश किया, और चतुर्मास बड़े ही आनन्द और उत्साहपूर्वक सम्पन्न हुआ । ___ भाग्य और प्रारब्ध के सम्बन्ध में इस प्रकार की अनेक बातें हैं जो मनुष्य को गुमराह कर दिया करती हैं । जिस भारतीय दर्शन ने यह बताया कि तू सृष्टि का स्रष्टा, नियंता और शासक है, तुझे परमात्मा के सिंहासन पर अधिकार करना है उस भारत में ऐसी दकियानूसी और बुजदिली पैदा करने वाली बातें कहाँ से आईं पता नहीं, यदि मनुष्य इन बातों में उलझ जाता है । मन की कमजोरी और भय ले आता है तो मानना चाहिए वह श्रीकृष्ण के जीवन की वह झाँकी नहीं देख पाया है, जिसमें चरवाहे का जीवन बिताने वाला श्रीकृष्ण एक दिन समूचे भारत का नायक बन जाता है, और गीता दर्शन का उपदेश देता है । जिस श्रीकृष्ण ने नर से नारायण और आत्मा से परमात्मा बनने का मार्ग दिखाया । देवताओं को चुनौती
श्रीकृष्ण ने जिस प्रकार समाज के अंधविश्वास और कुरीतियों को झकझोरा है, और पत्थर पहाड़ पर आसन जमाए बैठे देवी देवताओं को चुनौती दी है वह भी कम दिलचस्प चीज नहीं है । जैन दर्शन और हरिवंश पुराण पढ़ने वाले जानते हैं कि ब्रजवासी लोग देवी देवताओं की पूजा करते थे । इन्द्र को बहुत बड़ा देवता माना जाता था, उसकी पूजा में हजारों मन दूध जमुना में बहा दिया जाता था । इसकी कल्पना उनमें नहीं थी कि उनके द्वारा बहाए गए दूध को पीने के लिए इन्द्र जमुना में नहीं बैठा रहता था । श्रीकृष्ण ने वर्षों तक इसको देखा, और एक दिन इन्द्र की पूजा के लिए जब ब्रज के लोग एकत्र हुए तो श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा कि कभी किसी ने इन्द्र को देखा है ? और कभी वह दूध पीने को आता है ? आखिर इन्द्र उनके लिए क्या करता है जिसके लिए इन्द्र के नाम पर इतना दूध जमुना में बहाया जाता है । श्रीमद्भागवत में जो वर्णन आया है उसे यदि प्रारम्भ से पढ़ा जाय तो ऐसा लगेगा जैसे
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