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पर्युषण-प्रवचन
धीरे-धीरे वे परिपक्व होते जाते हैं । जिनके माता-पिता उदार होता हैं, अतिथि और अभ्यागतों का सत्कार करना जानते हैं, उन्हीं की संतान गौतम जैसी महान् आत्मा के मिलने पर रास्ता चलते भी निमंत्रण दे सकते हैं । हमारी माताओं में जब अच्छे संस्कार होंगे तो उनके पुत्र-पुत्रियाँ स्वयं ही संस्कारी और सभ्य बन जायेंगे इसमें कोई शक नहीं । श्रीदेवी का हृदय विशाल था, हाथ उदार था और वाणी मीठी थी । इस प्रकार उसके हृदय हाथ और मुँह तीनों में ही अमृत ही अमृत भरा था तो क्यों न उसके लाड़ले पुत्र में ये गुण स्वयं ही आते ?
नया चिन्तन
गौतम स्वामी की अंगुली पकड़े अतिमुक्तक राजमहलों की ओर आ रहा था, उसका मन आज न जाने क्यों बहुत प्रफुल्लित हो रहा था, गौतम स्वामी के प्रति उसके मन में एक सहज आकर्षण खिंचाव और स्नेह पैदा हो रहा था, जैसे उसे अपना सखा मिल गया हो और हठ करके उसे घर पर बुला रहा हो । राजधानी में गौतम स्वामी का यो चलना एक बड़ी बात थी । कौन क्या कहेगा इसकी परवाह किए बिना वे एक तमाशा बना कर चलते रहे । और अंगुली छुड़ाने का प्रयत्न नहीं किया, यह भी एक गम्भीर प्रश्न है ? कुछ व्यक्तियों ने इस पर कुछ प्रश्न भी किए हैं कि जब यह बात उनकी परम्परा के प्रतिकूल थी तो ऐसा क्यों किया ? क्यों अपनी अंगुली छुड़ाई ?
मैं समझता हूँ यह परिपाटी कुछ नया चिंतन देती है । परम्परा और परिपाटी के नाम पर जो अंधविश्वास और व्यामोह चलता है उसे ललकार कर रही है । उन्होंने परिस्थिति देखी, बालक की भावनाएँ देखी, इस बालक के हृदय में श्रद्धा के अंकुर फूटने लगे हैं, यदि उन्हें अवज्ञा का हल्का-सा धक्का भी दिया गया तो वे कुचल जायेंगे । उन्होंने सोचा मर्यादायें तो मेरे पास में हैं, वह छुई-मुई नहीं कि बच्चे के अंगुली पकड़ लेने से समाप्त हो जाएँ ? मर्यादा और परम्परा का उद्देश्य है— कि वह जीवन में व्यवस्था बनाए रखें न कि जीवन को उसी पर घसीटते ले जाएँ । महापुरुषों का जीवन प्रवाह शास्त्र पुस्तक या किसी बने बनाये मार्ग पर ही नहीं चलता बल्कि वह नये मार्ग का निर्माण भी करता है । जिस रास्ते से वे चलते हैं, वही रास्ता हजारों मनुष्यों के चलने का मार्ग बन जाता है । एक कवि ने
क्या खूब कहा है
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यदि पथि विपथे वा यद् व्रजामः स पन्थाः
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