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पर्युषण-प्रवचन
में स्वयं को तपाया तो ऐसा तपाया कि आत्मा कंचन हो गई । गुणरत्न-संवत्सर तप की कठोर आराधना की और अन्त में राजगृह के विपुलाचल पर्वत पर एक महीने का अनशन करके केवल ज्ञान प्राप्त कर मुक्ति की ओर प्रस्थान किया । यह किसे पता था कि एक दिन पानी में पात्र की नाव तैराने का नाटक करने वाला संसार-सागर से अपनी नाव को तैरा कर किनारे लगा लेगा ।
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