________________
अतिमुक्त कुमार
जा रहा है और उधर से एक छोटा-सा शेर का बच्चा दहाड़ता हुआ आ पहुँचता है । बस, हाथी के होश उड़ने लगते हैं, उसे देखकर । क्या मुकाबला है, उन दोनों का ? सिंह छोटा अवश्य है, पर सिंह का छोटापन मत नापिए, उसका तेज नापिए । जो तेज सिंह - शिशु में प्रदीप्त हो रहा है, वह उस सौ वर्ष के हाथी में नहीं मिलेगा । उस छोटे-से सिंह - शावक के सामने मदमस्त बृहत्काय गजराज को भी भागना ही पड़ता है ।
अन्धकार कितना बड़ा है, विशाल है ? लेकिन उस अन्धकार में एक नन्हीं सी दीपक की लौ टिमटिमाती हुई अपना सिर ऊपर उठाती है, चमकती है, जो अन्धकार को छिन्न-विच्छिन्न कर देती है । कहाँ अन्धकार की सघनता और कहाँ दीपक की जरा-सी लौ पर उस लौ में तेज है । इसलिए उसके सामने आकर अन्धकार के पैर उखड़ जाते हैं । एक ओर विशाल गिरिराज है और उनकी ऊँची-ऊँची चोटियाँ आसमान को छूने जा रही हैं; दूसरी ओर आसमान में क्षण भर के लिए चमकने वाली विद्युत है, किन्तु वही बिजली जब उस पर्वत पर गिरती है तो उन गगनचुम्बी चोटियों के टुकड़े-टुकड़े कर देती है । हाँ तो तेज का मूल्य है संसार में । जिसमें तेज है, उसी में बल है, शक्ति है । जिसके अन्दर एक महाप्रकाश झूम रहा है, जिसके जीवन में उच्च संस्कार और विचार बिजलियों की तरह चमकते रहते हैं, वह जीवन जब आगे आ जाता है और करवट बदलता है, तो उनके अन्दर की सोई हुई आत्मा बिखर कर बाहर आ जाती है । साधारण प्रतीत होने वाला व्यक्ति भी इतिहास को नया मोड़ देने में समर्थ होता है ।
भारत की एक विशाल राजसभा में बड़े-बड़े जिग्गज पण्डितों का शास्त्रार्थ हो रहा था । वेद, आगम, त्रिपिटक एवं दुनिया भर के शास्त्रों को उछाला जा रहा था, बाल की खाल निकाली जा रही थी, तर्कों की जाल में उलझ रहे थे, विद्वान् लोग । तभी एक बालक आया और अपने पिता की गोद में जा बैठा । जब उसने देखा कि ये पण्डित लोग वाद-विवाद में उलझते जा रहे हैं तो अनायास ही उसके मुँह से एक आवाज निकली और सभा में सन्नाटा छा गया । सभी उस बालक की ओर देखने लगे राजा और एकत्रित विद्वानों ने पूछा कि तुम क्या जानते हो ? तो बालक ने कहा
"बालोऽहं जगदानन्द ! न मे बाला सरस्वती ।
अप्राप्ते तु पञ्चमे वर्षे वर्णयामि
जग्त त्रयम् ॥
Jain Education International
१०३
For Private & Personal Use Only
"
www.jainelibrary.org