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समभावी साधक : गज सुकुमार
उन्होंने कहा-"तुम दूसरों की भी परीक्षा करके देखो ।"
सभापति ने इस बार वास्तविक पतंगों को भेजा । एक पार्टी गई, वह नहीं लौटी, दूसरी गई वह भी नहीं लौटी । वे सब पतंगे दीपक को देखकर सुध-बुध भुला बैठे, सूचना देने के लिए भी लौट न सके । यह भी उन्होंने नहीं सोचा कि चलकर सूचना तो दे दें ।
यह एक अलंकार है, रूपक है । यह कहानी हमें प्रेरणा देती है कि धर्म का दीपक, धर्म की ज्योति जल रही है । अहिंसा का, सत्य का, दया-दान और तपस्या का दीप जल रहा है; वह पतंगे नहीं हैं, जो पर्युषण पर्व आने पर भी इधर-उधर घूम रहे हैं, बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं, पर सर्वस्व न्योछावर करने को आगे नहीं आ रहे हैं । संसार का विराट् प्रकाश, धर्म की महान् ज्योति जगमगा रही है और धर्म के दीवाने साधक-साधु या श्रावक प्रकाश के मार्ग में आगे नहीं बढ़ रहे हैं तो वे सच्चे पतंगे नहीं हो सकते । यह पर्युषण-पर्व अध्यात्म के पतंगों की परीक्षा का समय है ।
हाँ, तो जब आप सच्ची निष्ठा से आगे बढ़ेंगे, इस ज्ञान के, तप के और धर्म के जगमगाते हुए पर्व-दीप में अपनी सद्भावनाओं की आहुतियों को अपर्ण करने के लिए, इस दीप की प्रदक्षिणा करने के लिए और जरा जलने का आनन्द लेने के लिए इसके अन्दर प्रवेश करेंगे, तभी सच्ची शान्ति का अनुभव होगा । अतः जीवन में शक्ति प्राप्त करें, अपने आपको सबल बनाएँ, फिर सिद्धि का द्वार आपके लिए खुला है ।
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