________________
समभावी साधक : गज सुकुमार
गज सुकुमार के जीवन में साधना की ज्वाला प्रज्वलित हो चुकी थी । उसे बुझाने के लिए सुख-दुःख के तूफान चले । माता-पिता के हजार-हजार आँसू बहते हैं ताकि पुत्र का वैराग्य उन आँसुओं में बह जाए, पर वे गज सुकुमार को अपने पथ से हटाने में सफल न हो सके; वे उस महाशक्ति को विचलित न कर सके । कृष्ण ने भी स्नेह की मधुर धारा बहाते हुए कहा-"भैया ! अभी तो तुमने यौवन में पैर रखा है, कुछ दिन दुनिया के सुखों का आनन्द लो । यदि तुम विवाह के दायित्व से बचना चाहते हो तो कोई बात नहीं, उससे मुक्त रह सकते हो । परन्तु तुम राजकुमार हो, अतः राज्य के दायित्व से मत भागो । हम तुम्हें राजा के रूप में देखना चाहते हैं । अधिक नहीं तो एक दिन का भी राज्य करो ।" यह भी एक परीक्षा थी, हवा का प्रबल झोंका था । राज्य
राजसिंहासन की बात सुनकर गज सुकुमार मौन रहे । कृष्ण ने सोचा साधना का वेग कुछ मन्द पड़ रहा है । उन्होनें उसे सोने के सिंहासन पर बैठाया और राज्याभिषेक कर दिया । अब बड़े-बड़े राजा महाराजा हीरे जवाहरात की भेंट लेकर आने लगे और नये सम्राट् को अभिवादन करके वह नजराना उनके सामने रखने लगे; सम्पत्ति का ढेर लग गया । कृष्ण ने देखा कि अब मेरी योजना सफल हो रही है । शहद की मक्खी फूलों की ओर जाती है तो भन-भन करती है, पर फूलों पर बैठते ही मौन हो जाती है । इसी तरह मानव भोगों से दूर रहता है तो त्याग-वैराग्य की बातें करता है, साधना की लम्बी-चौड़ी डींगे हाँकता है, सभा सोसायटी तथा विधान सभाओं में क्रान्ति की सुधार की योजनाएँ रखता है, भनभनाहट करता है मानो कि बड़ा भारी तूफान मचा देगा । परन्तु जैसे ही ऐश्वर्य के निकट पहुँचता है, अधिकार की कुर्सी पर बैठता है तो उसकी आवाज बन्द हो जाती है । __ कृष्ण ने सोचा-राज्याभिषेक का नाम सुनते ही मौन हो गया तो अब यह ऐश्वर्य का अम्बार देखकर और जय-जय नाद के गगनभेदी स्वर सुनकर साधना-पथ को भूल गया होगा । नये साम्राज्य का स्वप्न देख रहा होगा । कृष्ण ने विनत होकर पूछा--"सम्राट् ! आपकी क्या आज्ञा है ? क्या किया जाए ?" कृष्ण ने सोचा कि नए साम्राज्य में अभिवृद्धि करने, भव्य भवन बनाने की आज्ञा मिलेगी । उन्हें क्या मालूम कि इसका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org